आप भूल तो नहीं गए
रखकर कार्ड कहीं या
अभी तक आपको
मिला ही नहीं, पर
अगर मिला हो तो
साथ लाना भूलें नहीं।
दीपक शर्मा की रोशनी
पहुंच रही है जमाने तक
जमाने के दिमागों तक
आप जानना चाहेंगे
जमाने का दिमाग
पहली बार सुना है
पर मानिए आप
जमाना भी तो
आपको और हमको
मिलाकर ही तो बना है
और हम सबका दिमाग
जमाने का ही दिमाग है
जिसमें विचारों की
अद्भुत आग है
आग जो जलाती है
शीतलता भी पहुंचाती है
कितनी भी गर्मी हो
बिन ए सी ठंड और
बिन हीटर तपा देती है।
विचारों को मत भूलें
इसकी विविधता में झूलें
सामान्य नहीं
भर भर कर पींगें।
ख़लिश (तेरी आवाज़ मेरे अल्फ़ाज़)
का लोकार्पण है
जिसमें ऐसी ही आग भरी है
निमंत्रण का चित्र है ऊपर
पर भूल न जाना इसे लाने को
साथ ही लेकर आना है
बेकार्ड आना परेशानी का सबब बन सकता है।
कार्डधारकों रहेगा आपका इंतजार
पहुंचना अवश्य करेंगे आपके दीदार।
सूचना नहीं दोहराऊंगा
बस एक बार तारीख बतलाऊंगा
शनिवार 5 जून 2010 को सायं 6.00 बजे
कहां पर है
कौन कौन शामिल होंगे
सारी जानकारी कार्ड ही बतलाएगा
उसी से पूछें
जो कार्ड मिला है
उससे हिल मिल लें।
शनिवार 5 जून 2010 को याद रखना मित्रों, भूल न जाना, भूल गए तो चित्र देखकर ही सब्र करना होगा
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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कवि दीपक शर्मा,
ख़लिश का लोकार्पण
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आ न पायेंगे मगर कार्ड रख लिए हैं,.
जवाब देंहटाएंअवश्य आना.हम आप सब के सम्मान में खड़े मिलेंगे.आपको देख कर खिलेंगे...
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