हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ताकत को कम करके आंकना बिल्‍कुल ठीक नहीं है : अविनाश वाचस्‍पति


आप साहित्‍यकार उदय प्रकाश, दिविक रमेश, प्रताप सहगल, प्रेम जनमेजय, सूरज प्रकाश, सुभाष नीरव, बलराम अग्रवाल, रूपसिंह चंदेल, पवन चंदन कुछ नाम ही ले रहा हूं, इनके ब्‍लॉग देखते ही होंगे, उन्‍हें देखकर आपको अपने प्रश्‍न का सकारात्‍मक उत्‍तर मिलेगा। साहित्‍यकारों की यही प्रवृत्ति अब ब्‍लॉगरों में भी दिखलाई दे रही है जो कि इस क्षेत्र में ब्‍लॉगरों की सफलता को दिखला रही है। ...


जहां-जहां देसी जमीन का स्‍पर्श दिखलाई देता है वो तन-मन को निश्चित ही आलोडि़त और झंकृत कर जाता है। पर अब देसी जमीन ही नहीं है जो है भी वो भी पूरी तरह व्‍यावसायिक हो चुकी है। जिसके पास है भी वो कैरियर के चलते उसे छोड़ने को विवश है। फिर भी देसी जमीन आज भी कविताओं में अपनी भरपूर शिद्दत से मौजूद है। इसका औसत निश्‍चय ही कम हुआ है जबकि मिसाल के लिए आप कवि दिविक रमेश के ‘गेहूं घर आया है’, सुरेश यादव के ‘चिमनी पर टंगा चांद’, लालित्‍य ललित के ‘इंतजार करता घर’, मोहन राणा के ‘धूप के अंधेरे में’ जैसी पुस्‍तकों की कविताओं में बिना तलाशे पा सकते हैं। पर यह स्थिति और 30 साल बाद नहीं होगी। तब देसी के स्‍थान पर विदेसी जमीन का स्‍पर्श ही सब जगह मौजूद मिलेगा। ...

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