मुख्‍यमंत्री का दिल्‍ली के दिलवालों के नाम खुला पत्र

संदर्भ : कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और दिल्‍ली सरकार का बजट


... इन खेलों में निश्चित ही देश के चोटी के खिलाड़ी अपनी विशाल परंपराओं को कायम रखते हुए हारेंगे तो पब्लिक जो मोटे मोटे आंसू बहायेगी उससे पानी की कमी तो पूरी हो जाएगी। यह पानी की कमी को दूर करने की हमारी सार्थक पहल ...

... मैं किसी भी हद तक गुजर जाऊंगी पर आपको गुजरने नहीं दूंगी। ...


... दिल्‍ली सरकार दिल्‍ली वालों को अपना मानती है तो उसकी जेब से कुछ भी निकालने का हक रखती है कि नहीं। अपनी जेब से खुद निकालना जेबकटी की श्रेणी में कब से शुमार हो गया। अगर गेम्‍स के नाम पर या सुविधाएं दिलाने के नाम पर थोड़ा अधिक निकाल भी लिया तो खफा होने की क्‍या बात ...


... चाय चाहे बीस रुपये कप भी हो जाए तब भी इस पर प्रतिबंध लगाने का हमारा कोई प्रस्‍ताव सरकार के विचाराधीन नहीं ...


... मंदिरों में – सब जगह पर भिखारियों को भीख देने के लिए दिल्‍लीवाले जब इतने दिलदार हैं तो सीधे से तो उनका दिल तोड़ना मुझे ठीक नहीं लगा। इसलिए यह सोचा गया कि पब्लिक के पास इतने पैसे छोड़ो ही मत कि भीख दे पाएं, जब भीख मिलेगी ही नहीं तो भिखारी खुदबखुद दिल्‍ली से किनारा कर ...


...मैं आपको विश ही कर रही हूं विष तो नहीं दे रही हूं। मेरे दिल ने कभी नहीं चाहा कि दिल्‍लीवालों का दिल दुखाया जाए बल्कि कोई और भी न दुखाये इसीलिए ऐसी कोशिश की जा रही है कि पहले ही दिल इतना दुखता रहे कि कोई और दुखाये तो दुखने का अहसास ही न हो ...


...ऐसे नागरिक होने चाहिए जिनके सभी अंग-प्रत्‍यंग चुस्‍त-दुरुस्‍त हों। सिर्फ दिल ही मजबूत हो और बाकी शरीर बीमार हो तो कोई भी खेल खेलना तो क्‍या देखना भी संभव नहीं होता है। टांगों में जरा-सा भी दर्द हो रहा हो तो मन नहीं ...


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