चंदाई के चंद नुस्खे ( नई दुनिया सण्डे के होली विशेषांक में प्रकाशित व्यंग्य)

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  • Atul CHATURVEDI
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  • चंदा मांगना हमारी गौरवशाली परंपरा है । कई महापुरुषों ने बहुजन हिताय चंदा मांगा है। ब्राह्मणों का तो इस पर एकाधिकार रहा है । सौभाग्य से मैं भी ब्राह्मण हूं सो अपनी पुष्ट कुल पंरपरा को कैसे त्यागता ? चंदे पर मेरा ऐसे ही विश्वास है जैसे अमेरिका का पाक पर । स्व वित्त पोषित कार्यक्रम से मुझे अत्यन्त घृणा है । उतनी ही जितनी ठाकरे परिवार को उत्तर भारतियों से । चंदा मांगने के प्रति मेरा उत्साह तब और बढ़ गया जब मैंने ये जाना कि दयानंद सरस्वती से ले कर गांधीजी तक ने अपने जीवन काल में चंदा मांगा था । लगा अपुन भी कुछ रचनात्मक कर सकते हैं । चंदा आज भी मांगा जा रहा है बस अंतर इतना है कि तब जनकल्याणार्थ मांगा जाता था अब आत्म कल्याणार्थ मांगा जाता है । तब चंदे के पीछे उद्देश्य की पवित्र गंध रहती थी आज उसके पीछे विवशता की घायल मुस्कान रहती है । तब चंदा मांगा जाता था अब वसूला जाता है , हड़पा जाता है , पहुंचाया जाता है ।

    चंदा वसूली के क्षेत्र में सूक्ष्म प्रविधियों का प्रयोग हो रहा है । राजनीति और धर्म दो ऐसे क्षेत्र जिसकी उर्वरा भूमि पर चंदे की फसल खड़ी लहलहा रही है । राजनीति की पाठशाला में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक नए विद्यार्थी के लिए यह आवश्यक है कि वो चंदा उगाहने की विद्या में निष्णात हो । क्योंकि एक सुभाषित में कहा गया है कि ऐसा राजनेता जो चंदा एकत्र करने की विद्या में प्रवीण नहीं होता है वो स्वयं का, कुल का तथा पार्टी का विनाश करता है । चुनाव के दिनों में चंदे की मांग यकायक बढ़ जाती है । हाईटेक युग को देखते हुए राजनीतिक दल सत्ता में आते ही अगले चुनाव की व्यवस्था में लग जाते हैं । समर्थ मंत्री अपने परिवार एवं पार्टी के विकास पर समान भाव से ध्यान देते हैं । वे चंदा वसूलने के सभी संभावित क्षेत्रों मसलन- कमीशन ,दान ,विकास कार्य आदि का गहन अवगाहन करते हैं । चंदा लाने वाला पार्टी का कमाऊ पूत होता है उसके सौ खून माफ होते हैं । उसका भ्रष्टाचार भी क्षम्य होता है । उसकी अकर्मण्यता भी श्लाघनीय होती है । उसकी चरित्रहीनता भी वंदनीय । धर्म के क्षेत्र में तो चंदे का भारी बोलबाला है । यहां चंदे को वीटो पॉवर है । चंदे पर सवाल उठाने पर आपको नास्तिक , काफिर,निकम्मा समझा जा सकता है । धर्म स्थलों के निर्माण के लिए चंदा देना प्रायः हर पवित्र आत्मा का कर्त्तव्य है । इन कार्यों में प्रायः जीवन की सांझ में पैर लटकाए वृद्धजन या मोहल्ले के बेरोजगार युवा सक्रिय भूमिका निभाते हैं ।

    भगवती जागरण , भागवत सप्ताह , भंडारा, शोभा यात्रा आदि के लिए ये ही उत्साहीजन चंदा वसूलते हैं । वैसे चंदा वसूलना तो सरल लेकिन इकट्ठा करना कठिन एवं श्रमसाध्य कार्य है । चंदा एकत्र करने हेतु धारक को अपार धैर्यशील , समय का पाबंद, मनोविज्ञान का ज्ञाता एवं वाक् प्रवीण होना चाहिए । कई बार ऐसे आयोजन के लिए आर्थिक नियोजन भी करने पड़ जाते हैं । मेरे एक मित्र हैं वे अत्यधिक मितव्ययी हैं दो रुपए सस्ता नमकीन लेने के लिए दो किमी. दूर चले जाते हैं । लेकिन मोहल्ले में अपनी छवि रक्षार्थ चार जागरणों में आठ हजार रुपए दान में सहर्ष दे देते हैं । आप उन पर उंगली नहीं उठा सकते क्योंकि ये उनकी निष्ठा और भावना से जुड़ा मसला है । और चंदा कभी निष्ठावश , कभी भावनावश तो कभी विवशतावश दिया जाता है । एक बार मैंने मोहल्ले के दो युवकों को प्याऊ लगाने के लिए चंदा दिया । तीन दिन बाद वे मुझे स्मैक पीते नजर आए । खैर प्यास तो मिटी । प्यासे की प्यास बुझ जाए इससे बड़ा दान और क्या हो सकता है भला । इन दिनों साहित्य भी चंदामारी के भारी चपेटे में है । आप हमारी संस्था को दो सौ पचास रुपए भेजिए और साहित्य गौरव सम्मान पाइए । लघु पत्रिकाओं के तो मुख पृष्ठ के बाद से ही चंदे की चीख-पुकार शुरु हो जाती है । जो कि पुस्तकें मिली स्तंभ तक जारी रहती है । किन्ही पत्रिकाओं में एक बॉक्स बनाकर विभीन्न शीर्षकों से एक निवेदन , पाठकों से जैसे मार्मिक आह्वानों से चंदा मांग जाता है ।

    शहर में कोई साहित्यिक आयोजन हो और आप गलती से साहित्य सुनने या रचने का शौक रखते हैं तो आपकी साहित्यिक आत्मा को तर्पण तो चंदे की रसीद कटाने के उपरांत ही मिलेगा । कर्मचारी संगठनों के अधिवेशन , समाज के मिलन समारोह , मोहल्ले की विकास समिति आदि से बच कर मनुष्य भला कहां जाइएगा , जहां जाइएगा कटर पाइएगा । रसीद कट्टा लिए , कूपन पकड़े , मुस्कान नियोजित किए जल्लाद तैयार हैं । आ प्यारे धर्म के लिए चढ़, समाज के लिए चढ़ , सुखद भविष्य के लिए चढ़ । कैसे तो चढ़ । तू चढ़ेगा तो ही तो हम बचे रहेंगे । हमारा कारोबार फलता-फूलता रहेगा । स्थानान्तरण से बचना है , डेपुटेशन कराना है ,ड्यूटी चाहिए तो यूनियन का पट्टा गले में धारण कर मजे से घूम । इस कवच के चलते किसी भी अर्जुन का गांडीव तेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । तू रसीद रूपी अमोघ अस्त्र से नित नवीन शक्तियां प्राप्त करता रहेगा । चंदे का इतना माहात्म्य सुन कर मैंने भी ट्राइ करने की सोची । अपने पिताजी को भी चंदा महिमा के सातों अध्याय सप्रसंग बताए । बच्चों को चंदा महिमा की प्रेरणास्पद कथाएं सुनायीं ।

    होली करीब थी तो हमने सोचा क्यों न इस पावन पर्व पर हम भी अपनी प्रतिभा परख लें। मेरे पिताजी सुबह चंदा उगाहने निकलते , मैं दोपहर में और मेरे बच्चे शाम को । आठहु याम चंदा लाहू जू , चंदा लाहू जू यहै झक ... वाली पोजीशन हो गयी। हमें अच्छी सफलता मिली । हमारे बच्चों की छोटी-छोटी इच्छाएं पूरी हो गयीं । चंदे के चार पैसे बचाकर यदि किसी का परिवार खिल-खिला सके तो इसमें बुरा क्या है । लोग करोड़ों रुपए डकार के उफ तक नही करते तो । इसलिए घबराइए नहीं आप भी जुट जाइए चंदाबाजी में । क्या पता चंदागिरी के चलते आपको भांडगिरी, दादागिरी आदि से मुक्ति मिल जाए । आखिर चंदे के बल पर जब बड़े-बड़े संस्थान चल सकते हैं , देश चल सकता है तो आप क्यों नहीं ? इस होली पर एक अदद रसीद तो कटाइए ...कटाइए न । लोग तो घोटाले कर के नाक कटा रहे हैं तो कुछ नहीं और आप फालतू ही शर्मा रहे हैं । उनसे कुछ तो सीखिए इस होली में ।

    3 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
      इसे 13.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
      http://chitthacharcha.blogspot.com/

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    2. रचना पर बधाई बहुत दिनों से लंबित थी, पता ना होने के कारण नहीं भेज पाया। विशेषांक की एक बेहतरीन रचना के लिए चतुर्वेदी जी बधाई स्वीकार करें।

      प्रमोद ताम्बट
      भोपाल
      www.vyangya.blog.co.in
      www.vyangyalok.blogpost.com

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