शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 8

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    चले मुकदमें भगत सिंह पर,
    और अनेक क्रांतिवीरों पर .
    सत्ता ने फाँसी ठानी थी,
    मुकदमों को दी रवानी थी .

    भगत सिंह का आक्रोश रोष,
    क्रांतिवीर का जयनाद जोश .
    इंकलाब जिंदाबाद घोष,
    आजादी का बना उदघोष .

    इतिहास दिवस लो आया था,
    निर्णय कोर्ट का लाया था .
    जिस दिन की थे बाट जोहते,
    दिन दिन गिन कर राह देखते .

    घड़ी सुहानी वह आई थी,
    बासंती में रंग लाई थी .
    सहमी सत्ता ने दी पुकार,
    फाँसी की थी उसे दरकार .

    कोर्ट फैसला तय था फाँसी,
    चौबीस मार्च दे दो फाँसी .
    सन एकतीस की यह थी बात
    जग रहा भाग्य भारत प्रभात .

    क्रांति गतिविधियों में लिप्त थे,
    आभा से मुख शौर्य दीप्त थे .
    ’राजगुरू’, ’सुखदेव’, ’भगत सिंह’,
    फांसी लेंगे यह भारत सिंह .

    गीत मिलन के तीनों गाते,
    हँस हँस कर थे मौत बुलाते .
    चोले को बासंती रंग माँ,
    देख पुकार रही भारत माँ .

    भारत जकड़ा जंजीरों में,
    कूद पड़े तब हवन कुण्ड में .
    आन बचाने यह भारत सिंह,
    राजगुरू, सुखदेव, भगत सिंह .

    सभी जुबाँ पर एक कहानी,
    क्रांति वीरता भरी जवानी .
    फैला जन जन क्रांति ज्वार था,
    स्वतंत्रता का ही विचार था .

    अभीष्ट पूरा हुआ भगत सिंह,
    गर्जन थी अब हर भारत सिंह .
    पैदा कर दी हर दिल चाहत,
    बिन आजादी मन है आहत .

    मात पिता को जेल बुलाया,
    बेटे ने संदेश सुनाया .
    भगत देश पर होगा शहीद,
    पूरी होगी मेरी मुरीद .

    दुख का आँसू आँख न लाना,
    समय है मेरा मुझको जाना .
    पूत आपका हो बलिदानी,
    अपने खूँ से लिखे कहानी .

    जन्म दिया माँ तुमने मुझको,
    शीश नवाऊँ शत शत तुमको .
    माता धरती, पिता आकाश,
    उनके चरणों स्वर्ग का वास .

    माँ तेरा उपकार बड़ा है,
    किंतु देश का फ़र्ज़ पड़ा है .
    भारत माँ का कर्ज़ बड़ा है,
    राष्ट्र बेड़ियों में जकड़ा है .

    मचल रहे अरमाँ कुरबानी,
    झड़ी लगा दे अपनी जबानी,
    दे दे कर आशीष अनेकों,
    घड़ी शहादत आयी देखो .

    देख देख जग विस्मृत होगा,
    पढ़ इतिहास चमत्कृत होगा .
    मुझको इतिहास बदलना है,
    अब यह साम्राज्य निगलना है .

    मोल नही कुछ मान मुकुट का,
    मोल नही कुछ सिंहासन का .
    जीवन अर्पित करने आया,
    माटी कर्ज़ चुकाने आया .

    याचक बन कर मांग रहा हूँ,
    तेरा दुख पहचान रहा हूँ .
    लाल जो खेला तेरी गोदी,
    डाल दे भारत माँ की गोदी .

    तेरा तो घर द्वार क्रांति का,
    तू जननी है स्रोत क्रांति का .
    कोख पे अपनी कर अभिमान,
    पाऊँ शहादत, दे वरदान .

    एक पूत का गम मत करना,
    सब तरुणों को पूत समझना .
    जग में तेरा सदा सम्म्मान,
    युगों युगों तक रहेगा मान .

    खानदान की रीत निभाई,
    राह क्रांति की मैने पाई .
    दादा, चाचा, पिता कदम पर,
    खून खौलता दीन दमन पर .

    माता कर दो अब विदा विदा,
    हो जाऊँ वतन पर फ़िदा फ़िदा .
    रहे अभागे जो सदा सदा,
    खुशियाँ हों उनको अदा अदा .

    कवि कुलवंत सिंह

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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