घर तक है नीलाम पड़ा,दारू की ठेकेदारी में,
देखो फिर भी दम भरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
इंसानों से कब का रिश्ता, तोड़ चुके हैं ये साहिब,
इंसानियत कहरते है,बस झूठी शोहरत के खातिर.
लिए गुरूर-अहम सत्ता का,हैवानो से हाथ मिलाते,
हैवानियत से डरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,
बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
रोज ग़रीबों की आहों पर, नाम लिखा होता है जिनका,
मानवता पर वो मरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
सुंदर लिखा है भाई.
जवाब देंहटाएंगंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
जवाब देंहटाएंमरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
आप ने तो इस कविता मै बिलकुल सच लिख दिया आज का,
क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
जवाब देंहटाएंजिनकी सूरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आए,
असली फितरत छुपी रहे...
बढ़िया है विनोद भाई...
जय हिंद...
सुंदर
जवाब देंहटाएंज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
जवाब देंहटाएंयथार्थ को शब्द दे दिया.
बेहतरीन
क्या क्या नहीं करते लोग
जवाब देंहटाएंझूठी शोहरत की खातिर ...!!
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
जवाब देंहटाएंमरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
-जबरदस्त!!