सवाल आपसे हैं, उनसे नहीं जो सवाल पैदा कर रहे हैं।

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  • अमिताभ श्रीवास्तव
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  • कल मुम्बई में अफरा-तफरी मच गई। मध्य-रेल अचानक ठप्प हो गई। सुबह के उस समय यह सब हुआ जब लाखों लोग अपने कार्यस्थल की ओर रवाना होते हैं। एक निर्माणाधीन पुराना पाईपलाइन वाला पुल टूट कर लोकल ट्रेन पर गिर जाता है, हाहाकार मच जाता है। मचे भी क्यों नहीं आखिर ट्रेन हादसे मे मौत भी हुई और घायल भी हुए। ऐसा लगा मानों किसी परिवार के मुख्य व्यक्ति को हार्ट अटैक आया और परिवार वालों में भगदड मच गई। बदहवासी छा गई। सारा कामकाज रुक गया। सबकुछ उलट-पलट सा गया। मुम्बई की लोकल ट्रेन को भी तो जीवन रेखा ही माना जाता है। यही वजह है कि कल लोग किस हाल में थे, और किस हाल में घर पहुंचे..बडी करुणामयी कहानी है। अफसोसजनक यह कि इस कहानी की आदत हो गई है, हर गम पचाने की मज़बूरी हो गई है। रोज़ ब रोज़ कहानी दोहराती है, सो जीवन में यह आम हो गई है। वाह री विडम्बना। किंतु मैं मुख्य घटना के केन्द्र की बात करना चाह रहा हूं। उस कैब की बात करना चाह रहा हूं जिसमें मोटरमैन (ड्राईवर) फसां था और मौत से लड रहा था। वो जीत जाता यदि उसके विभाग वाले चुस्त दुरुस्त होते। दुख होता है यह कहने में कि देश का सबसे बडा नेटवर्क, सबसे बडा लापरवाह है जो अपने आदमी की जान की कीमत भी नहीं समझता और महज़ 5 लाख सहायता राशि देकर मामले की इतिश्री मान लेता है। वह एक निरापद मौत थी। करीब 3 घंटों तक दचके हुए कैब में दबा हुआ मोटरमैन सहायता के लिये गुहार लगा रहा था, और रेलप्रशासन मामले की पुष्टी के लिये मीडिया से मुखातिब होना ज्यादा बेहतर मान रहा था। कहने को वहां सब थे। रेल विभाग का आपातकालीन दस्ता भी था, पुलिस प्रशासन भी था, अग्निशमक दल के लोग भी थे और जनसामान्य की भीड भी थी। अगर वहां कोई नहीं था तो उस जिन्दगी को बचाने वाला, जिसकी सूझबूझ की वजह से बहुत बडी दुर्घटना टल चुकी थी। हास्यास्पद है जिस नेटवर्क के बारे में कहा जाता है कि यहां हर कार्य के लिये एक प्रशिक्षित व्यक्ति मौज़ूद है, साधन उपलब्ध हैं, वहां उसके पास कैब को काटकर जान बचाने के लिये जो औज़ार हैं वो सिर्फ दिखावा, कैब को काटने के लिये ड्रील मशीन लाई गई, गैस की टंकी लाई गई, पर वाह रे रेल विभाग, वो टंकी खाली निकली। मौत से लडने वाले ड्राईवर की थमती सांस की मानो किसी को कोई परवाह नहीं, पुलिस भीड को हटाने में व्यस्त, अग्निशमन दल रेल विभाग की कार्यवाही की प्रतीक्षा में, तो रेल विभाग का बचाव दल अपने ही बचाव में दिखाई दिया। अन्दर दबा कुचला उसका खुद का आदमी अंतिम सांसे गिन रहा होता है और बाहर उसे बचाने के नाम पर सिर्फ नाटक खेला जाता है। और जब कैब काट लिया जाता है, अन्दर फंसे ड्राईवर को बाहर निकाला जाता है तो हाथ में सिर्फ लाश आती है, क्योंकि निकालते समय उसका हाथ कट जाता है, पैर मे चोट पहुंचती है, वैसे भी काफी देर हो चुकी होती है। वाह रे रेल विभाग की सफलता। उस लाश को अस्पताल भेजा जाता है, फिर घरवालों को सौंप दिया जाता है। परिवार के बहते आंसुओं के बीच दो शब्द संवेदना के टपका कर रेलविभाग अपनी कर्मठता का प्रदर्शन करता है। अब परिवार को सहायता राशि घोषित कर दी गई है, किसी को नौकरी का आश्वासन भी दे दिया जायेगा। बस्स..धीरे धीरे सबकुछ ठीक..खत्म...। वाह री...मानवता....। मुझे समझ में यह नहीं आता कि करोडों बज़ट वाले रेलविभाग में इतनी दुर्घटनायें हो चुकी है, बावज़ूद इससे निपटने के लिये आवश्यक साधन भी उपलब्ध नहीं? प्रशिक्षित कर्मचारी भी नहीं? जो ऐसी घटनाओं के होते ही चुटकी में जान बचा सकता हो? होनी को कौन टाल सकता है, यह सच है किंतु होनी के बाद अगली होनी से बचाने के उपाय खडे किये जा सकते हैं। किंतु लापरवाहों की आंखे नहीं होती, दिमाग नहीं होता, होता है तो जेब भरने, काम चलने की बस एक तुच्छ मानसिकता होती है। मानवीय भूल होती है, किंतु कोई ड्राईवर मौत को आमंत्रण देता हो, ऐसा नहीं होता। अभी पिछले दिनो जब मथुरा में हादसा हुआ तो रेलविभाग ने ड्राईवर को दोषी मान कर अपनी कार्यवाही शुरू कर दी, किंतु जब मुम्बई में खुद रेलविभाग दोषी था तो कौन कार्यवाही करेगा?
    सवाल सिर्फ रेलविभाग को ही नहीं साधता, बल्कि हमारे आसपास फैले इस पूरे तंत्र को साधता है जो आदमी की जिन्दगी को कौडी की कीमत से तौलता है। हर जगह मौत खडी है। उसके खडे होने के संकेत भी दीखते हैं, उसे खडे करने वाले लोग भी दीखते हैं..किंतु नहीं दिखते इन पर पाबन्दी लगाने वाले। पूरी मानवता की यह सबसे बडी हार है। और हम अपनी ही हार रोज़ देखते है खडे होकर..., हंसते हुए..। क्या अब भी आप मौन साधना ही हितकर समझते हैं या ऐसी तमाम खडी मौतों के खिलाफ आवाज़ बुलन्द कर प्रशासन को चेताना चाहते हैं? सवाल आपसे हैं, उनसे नहीं जो सवाल पैदा कर रहे हैं।

    11 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत सुंदर लिखा आप ने आम आदमी की कीमत दो कोडी की भी नही,
      धन्यवाद

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    2. जिस तरह से सही वक्‍त पर सही सवाल उठाया गया है। उसी प्रकार सही वक्‍त पर सही कार्य हो गए होते तो ... पर हमें यह अब अच्‍छी तरह से और साफतौर पर मान लेना चाहिए कि हम भारत में हैं। हमारे यहां ऐसा ही होता है। मौत बड़ी खूबसूरती से गोता लगाती है और निर्ममता से जान ले जाती है, जान उसकी जो जान बचाता है पर लाज इस देश के कर्णधारों को नहीं आती है, न आएगी। वे तो राहत राशि की घोषणा कर आत्‍ममुग्‍ध हैं। उन्‍हें इससे क्‍या लेना देना, उनका वोट मजबूत रहना चाहिए। सो मजबूत ही रहेगा। उनकी जेब भरी रहनी चाहिए, सो हरी ही रहेगी। उनके कान खुले होने चाहिएं पर बहरे ही रहेंगे। यह और बहुत सारे ऐसे घटनाक्रम रोजाना ही विचारणीय होते हैं। जो नौकरशाही और नेताओं को कटघरों में खड़ा करते हैं पर इन सवालों का जवाब न आज तक मिला है और न कभी मिलेगा। हम सभी पुकार पुकार कर थक जायेंगे।

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    3. हां, हमारे यहां इन्सानों की कीमत पांच लाख या इससे भी कम ही है, और कई लोग ये कहते भी पाये जाते हैं कि और क्या चाहिये? इतना तो सालोंसाल कमा के भी न बचा पाता.

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    4. अनमोल जीवन का कीमत...?
      ..............?
      शर्म की बात है।

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    5. बहुत ही सही लिखा है किसी की जान की कीमत लगा देना क्षतिपूर्ति के रूप में चन्‍द लाख कीमत लगा देना, यह इंसानियत हो नहीं ।

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    6. Sach hai...waaqayee sadma pahunchane waalee durghatna thee...hame jaise in sabkee adat-see pad gayee hai...koyi to maai kaa laal us waqt lalkaar deta...dhikkar karta..jaise aatankwaad ko hamne hazam kar liya, usee tarah in durghatnaon ko...kitne 'kaash' leye baithe hain dilme...khamosh hai zubaan, bisurte hue mooh me..

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    7. उपसंहार:- एसी लोकल से यात्रा नही करनी चाहिये जो पाइप के नीचे से होकर गुजरती हो

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    8. यह अफसोसजनक है ..लेकिन कौन ज़िम्मेदार हि इसके लिये यह व्यवस्थ ही ना ? फिर इसके खिलाफ हम कुछ करते क्यों नहीं ?

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    9. ताज्‍जुब है कि देश की इतनी बडी जनसंख्‍या इतनी अव्‍यवस्‍था के कारण अपने परिजनों के मौत को झेलने के बावजूद भी चुपचाप रह जाती है !!

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    10. सब कुछ बदल रहा है कैसा युग आ गया आदमी के जीवन के भी दाम लग गये..बढ़िया प्रसंग उठाया आपने गर कुछ फ़र्क पड़े तो

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    11. सही सवाल उठाया आपने.

      मैं भाग्यशाली रहा कि किसी करण वश मैं उसी समय जाने वाला था मुलुंड, मगर जाना मुल्तवी हो गया, और किसी और को भेज दिया.

      वैसे वह भी बच गया है, भगवान की कृपा से.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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