हिन्दी वाले जिस दिन का इंतजार साल भर करते हैं। लो वो भी आ गया। आज एक और हिन्दी दिवस है। गए गुजरों सालों पर नज़र डालते हैं तो बीत गए कल की तुलना में अपने आज को बेहत्तर पाते हैं और भविष्य को डायमंड जड़ित देखते हैं। बीते कल में हिन्दी की खूब दुर्गति हुई है। उसी कल में यह सरकारी कामकाज की राजभाषा भी बनी और राष्ट्रभाषा बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। मुकाम बस हासिल होने ही वाला है। बीते कल में ही इसे हिंग्लिश बनने पर खूब आलोचना झेलनी पड़ी है। पर हिन्दी में अँग्रेज़ी के शब्द ले लेकर ही हिन्दी वालों ने अँग्रेज़ी की जड़ें काट डाली हैं। उसकी शब्दों की सेफ भी सुरक्षित नहीं रही है। उसमें भी हिन्दी ने सेंध लगा डाली है। अँग्रेज़ी के शब्द भंडार रीत रहे हैं। खुश हो लो अब अँग्रेज़ी के दिन बीत रहे हैं। जब अँग्रेज़ी माल हिन्दी में अवेलेबल है तो अँग्रेज़ी क्यों लाईक की जाएगी?
ई मेल पर अब तो खैर हिन्दी आ गई हैं जब नहीं आई थी तब भी हिन्दी के दीवाने हिन्दी में ई मेल भेजते रहे हैं। हिन्दी के शब्दों को रोमन में लिखकर जो जुगाड़ फिट किया वो हिट रहा है। मजबूर होकर हिन्दी के आगे अँग्रेज़ी ने घुटने टेक दिए हैं। ई मेल पर और नेट पर भी अब हिन्दी अपनी प्रखरता से शोभायमान हो रही है। सर्च इंजन भी हिंदी में, ब्लॉग हिन्दी में, विविध प्रकार के फोंट सब कुछ सर्वत्र पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें
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अंग्रेजों के खाने कमाने का दिन (अविनाश वाचस्पति)
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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