सेक्स, सेक्सुएलिटी और संस्कृति
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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प्रभात शुंगलू का लेख,
मीडिया ख़बर
योग गुरू बाबा रामदेव लोगों को ये सिखाते नहीं थकते कि जिंदगी में संयम बनाये रखना है तो योग की शरण में आओ। लेकिन धारा 377 को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के ताजा फैसले पर अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाये। समलैंगिकता को लेकर एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान बाबा ने जो कहा उसे यहां लिखा नहीं जा सकता मगर उनका मतलब ये था कि " वो जगह किसी और काम के लिये है" यौन संबंध के लिये नहीं। तमाम धर्माचार्य भी कोर्ट के इस फैसले से आग बबूला हैं। इनके मुताबिक समलैंगिकता धर्म विरोधी है, घृणित कर्म है, एक मानसिक विकृति है, एक ऐबरेशन यानि विचलन है जिसका विरोध न किया गया तो समाज का पतन निश्चित है। बाबा और धर्माचार्यों को समझने के लिये भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इतिहास सब ताक पर रखनी पड़ेगी। क्योंकि इन महापुरूषों ने भारतीय संस्कृति का एक नया इतिहास रचने का हठ कर लिया है। इस नये इतिहास का पहला चैप्टर सेक्स और समलैंगिकता पर होगा। इसमें खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों के इरॉटिक शिल्पकारी की बात नहीं बतायी जायेगी, उन चित्रों में दिखाये गये ओरल सेक्स का जिक्र बाबा की किताब में नहीं होगा। READ MORE...
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क्या यह ज़रूरी है कि सब एगरेशन्स पुस्तक या पाठ्यक्रम में लगे, इसलिए कि वे हमारे कोनार्क या किसी और मंदिर में गढे़ हुए हैं? यदि रामदेव जी ने कुछ अपशब्दों का प्रयोग करके भी यह जताया है कि ‘वह जगह किसी और काम के लिए है’ तो क्या ग़लत किया..आखिर भाषा तो वही कही जाएगी जो जल्दी समझ में आए!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंनारी को पुरुष और पुरुष को नारी उपलब्ध ना हो तो ये होना ही है। और ये भी ना हो तो अपना हाथ जगन्नाथ के बारे में इन लोगों का और बाबा रामदेव का क्या कहना है ? ज़रा बतलाइए तो।
जवाब देंहटाएंमूल लेख गंभीर है मगर लोगों को अपना दृष्टिकोण रखने की भी खुली सवतन्त्रता है !
जवाब देंहटाएंअगर धर्माधिकारियों का बस चले तो खजुराहो के मन्दिरों को ध्वस्त कर दें। पुराणों के संक्षिप्त संस्करण गीताप्रेस से निकलते हैं जिनसे यौन-सम्बन्धित आख्यानों को नहीं शामिल किया जाता। मुस्लिम और ईसाई सभ्यता के सम्पर्क में आने के बाद हमारी सभ्यता उनकी जैसी या उनसे भी अधिक संकुचित हो गई है।
जवाब देंहटाएंअब क्या कहें?
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