
औरत की देह इस समय मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है । सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र बनता है उसने सारे मूल्यों को शीर्षासन करवा दिया है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है। प्रिंट मीडिया जो पहले अपने दैहिक विमर्शों के लिए ‘प्लेबाय’ या ‘डेबोनियर’ तक सीमित था अब दैनिक अखबारों से लेकर हर पत्र-पत्रिका में अपनी जगह बना चुका है। आगे मीडिया ख़बर.कॉम पर।
प्रिय मित्र
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएं पढकर सुखद अनूभूति हुई। नयी तथा ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारे।
अखिलेश शुक्ल
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आपने मीडिया जगत की वो कड़वी सच्चायीं रखी है जिसे वो मानने को इंकार करता है । जागो अभी उजाला है ......कही देर न हो जाए । आपने मीडिया जगत की वो कड़वी सच्चायीं रखी है जिसे वो मानने को इंकार करता है । जागो अभी उजाला है ......कही देर न हो जाए ।
जवाब देंहटाएंसही बात।
जवाब देंहटाएंकाया की माया गजब, अजब-अनोखे रंग.
जवाब देंहटाएंमन को कोई न पूछता, तन के सब हैं संग.
तन के सब हैं संग, दूरदर्शन दीवाना.
येन-केन चाहे नारी की देह दिखाना.
जब से पीछे पड़ा 'सलिल' नर है घबराया.
मूँद न पाए नयन गजब काया की माया..
आपने बिल्कुल सही फ़रमाया ! बहुत ही शानदार लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंअब आप बेबाक रै मान्ग ही रहे हैन तो दे भी रहा हून भैये . अरे जब लोग देख्ना ही चहे तो बेचने से कौन रोक लेगा . और यहान नग्नता चपे तक सिमित है . बाहर निक्लो तो ऊपर चढ जाने को बेकरार . जै हो !
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