कुछ समय पहले फ़िल्म "धरम करम " का एक गाना कानों में पड़ा जिसने कुछ सोचने को मजबूर कर दिया।
"परदे के पीछे बैठी सांवल गोरी.."
भला एक लड़की सांवली व गोरी एक साथ कैसे हो सकती है?
ऐसे अनेक सवाल हमारी हिन्दी फिल्मों के गीत हमसे पूछ जाते हैं और हम जानते ही नही, मसलन मुकेश जी का यह गाना:
" साकी शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता की जहाँ पर खुदा न हो"
अब उत्तर दीजिये इस शराबी के प्रश्न का! है कोई ऐसी जगह जहाँ यमलोक के बहीखाते से दूर अपनी मनमर्जी की जा सके, भगवान् की पैनी निगाहों से बचा जा सके! फ़िर कैसे हम सोच लेते हैं की हमें कोई नही देख रहा, कोई स्टिंग ऑपरेशन नही कर रहा हम पर।
इसी तरह इश्क में गिरफ्तार एक गरीब युवक भरी महफ़िल में लड़की व उसके बापू से यह पूछता है
"खता तो जब हो की हम हाले दिल किसी से कहें
किसी को चाहते रहना कोई खता तो नही!"
सही बात है, हमारी मर्ज़ी हम जिसको चाहें, समस्या तब होनी चाहिए जब हम उसे प्रोपोज कर डालें!
बचपन में एक गाना सुनकर बहुत परेशां हो जाते थे, समझ में ही नही आता था
"मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, सावन के कुछ भीगे भीगे दिन..."
बाद में पता चला की कोई सामान वामान नही था, लड़की लड़के पर इमोशनल अत्याचार कर रही थी।
अंत में एक ऐसी क्लासिक पंक्ति जो तालिबान के गुंडों को सही राह दिखाने के लिए काफ़ी है, बस वो ज़रा गौर फरमाएं:
"परदा नही जब कोई खुदा से, बन्दों से परदा करना क्या"
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लिखा खूब है आपने इसका नहीं जबाव।
जवाब देंहटाएंगीतों में कम असलियत बहुत अधिक है ख्वाब।।
।सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मैं तो फिलम का नाम बदलवाने आया था, देखा तो पहले ही धरम-करम हो चुका :-)
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लेखन, आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे से आपने फिल्मी गीतों के विरोधाभास को पकड़ा..
जवाब देंहटाएंवाह वर्षा जी
जवाब देंहटाएंआपने तो धूम मचा दी
विरोधाभासों की बारिश करके
इसे पोस्टमार्टम कहें
या कहें चीरफाड़
या ......
और चाबी खो जाए।
ये भी खूब रही..कभी इस तरह से इन गीतों पर नजर न गई थी. आनन्द आया.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बढिया...
जवाब देंहटाएंaapka blog bahut achaa hai ...
जवाब देंहटाएंजब आप टिप्पणी कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंतो अच्छा ही होगा
आप तो खुद भी बहुत अच्छे हैं
वर्षा जी के लेख में गहरी बात छुपी है । इसलिए केवल वाह'वाह करके न रह जाएं। मुझे लगता है नुक्कड़ को वास्तविक चर्चा का मंच बनाएं। केवल वाह वाह का नहीं । वर्षा शायद कहना चाहती हैं कि हमारे फिल्मी गीत भी अच्छे खासे दर्शन से भरे हैं।
जवाब देंहटाएंअसल में कुछ पंक्तियों में विरोधाभास है व कुछ में दर्शन, निजी तौर पर मुझे 'मस्जिद में शराब' व 'परदा नही जब कोई' यह दो पंक्तियाँ बहुत पसंद हैं इनमें गजब का दर्शन छुपा हुआ है, जो हम गाना सुनते वक्त ध्यान नही देते। अतः उत्साही जी की बात सत्य है, प्रोत्साहन के लिए आप सभी का शुक्रिया, लेखनी में सुधार से सम्बंधित टिप्पणियों की भी अपेक्षा है।
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