राजेश उत्‍साही की दो ग़ज़लें

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  • राजेश उत्‍साही
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  • ॥ एक ॥
    हवाओं में जहर हर तरफ मिला है
    राह में जो बिछड़ा वो कब मिला है

    फेफड़े हैं कुन्द और नब्ज मद्धम
    दिमाग भी है बन्द,मुंह सिला है

    हर वक्त खुलकर सोचने वालो,
    आसपास ये कौन-सा किला है

    दूर से नजर आता है हरा-भरा
    पास आकर देखिए निरा पीला है

    मत रहो घोड़े की सूं बांधकर पट्टी
    राह में दाएं-बाएं भी उपवन खिला है

    रूठे-मनाएं, रूठ जाएं फिर से
    जिन्दगी का तो यही सिलसिला है

    पर्वत जो सामने है कोई बात नहीं
    हां, एक उत्साही से कब हिला है

    ॥ दो ॥
    मासूम सवालों का जमाना नहीं रहा
    चालाक हैं सब ,कोई सयाना नहीं रहा

    औरों की बुनियाद में हो गए पत्थर
    खुद का चाहे कोई ठिकाना नहीं रहा

    फटी हुई गुदड़ी के लाल हैं हम भी
    अलग बात है, कोई घराना नहीं रहा

    सी लिए होंठ सबने मूंद ली आंखें
    शायद कसने को अब ताना नहीं रहा

    बहारों के दरीचों पर है प्रवेश निषेध
    जाएं कहां अब कोई वीराना नहीं रहा

    समझेगा नहीं कोई मोहब्बत का जुनून
    हीर-सी दीवानी,फरहाद दीवाना नहीं रहा

    सिर-से पैर तक बदल गई है दुनिया
    फैशन में कोई चलन पुराना नहीं रहा

    आओ उत्साही से भी मिल लें चलकर
    चर्चा में उसका अफसाना नहीं रहा
    0 राजेश उत्साही

    13 टिप्‍पणियां:

    1. दोनों ही गज़लें बेहतरीन हैं.

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    2. वाचस्‍पति जी,
      पान बीड़ी सिगरेट तम्‍बाकू न शराब
      अपन को तो मोहब्‍बत का नशा है जनाब
      इसलिए लीवर के फीवर से दूर हैं हम

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    3. आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही बेहतरीन गज़लें । बधाई स्वीकार करें ।

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    4. उत्‍साही जी

      आपके जैसे परम उत्‍साहियों का राज जानते हैं हम

      जो पीते हैं पानी खूब और हवा में सीते हैं सांस

      पानी और हवा से मोहब्‍बत का है जादुई करिश्‍मा

      लीवर का रिलीवर है पानी 'ओ' हवा का चश्‍मा।

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    5. लिखीं है आपने बहुत बेहतर ये गज़ल,
      लगता है अब मैं भी करूं ऐसी ही पहल.

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    6. बेहतरीन हैं दोनों ग़ज़लें
      बधाई हमारी भी ले लें ....

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    7. शुक्रिया

      किसके लिए लिखता हूं मुझको पता नहीं
      समझे वही जिसको अपनी कहन सी लगे

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    8. मासूम सवालों का जमाना नहीं रहा
      चालाक हैं सब, कोई सयाना नहीं रहा

      बहुत सामयिक और संजीदा गजल से नवाजने के लिए शुक्रिया।
      आप कतई चिंता न करें कि आप चर्चा में नहीं हैं। आप चर्चा में तो खूब हैं बस हल्‍ला नहीं है। चर्चा अपनों के बीच होती है, अपनों के बीच ही चलती रहती है। एक खुशबू भरे माहौल में आपकी रोशनी फैलती रहती है। शुभकामनायें।

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    9. हवाओं मे जहर के साथ प्रेम भी है, इधर उधर भी तो देखिए।

      वैसे गजल अच्‍छी है, बधाई।
      -----------
      मॉं की गरिमा का सवाल है
      प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

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