गधे से न जीते, गधइया के कान मरोड़े !

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  • पुष्कर पुष्प
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  • चुनावी मौसम में टर्र-टर्र करने में जुटे हैं कई छोटे-बड़े-मझोले नेता, मानों बरसाती मेढ़क हों। वरुण गांधी भी उनमें से एक नज़र आ रहे हैं। टर्र-टर्र कर रहे हैं। हां, ये अलग बात है कि वरुण के नाम के आगे *'गांधी'* लगा है इसीलिए उनकी 'टरटराहट' *ज्यादा ज़ोर से निकल रही है या यों कहें कि ज़ोर-शोर से प्रचारित की जा रही है। ज़ाहिरा तौर पर वरुण गांधी ने जो कहा, जिस तरह से कहा और जिन शब्दों में कहा वो न सिर्फ घोर आपत्तिजनक है बल्कि अमर्यादित है और अनैतिक भी। लेकिन जूनियर गांधी को इसकी परवाह कहां। उनका उद्देश्य तो बस अपनी मां मेनका गांधी की विरासत में मिली सीट जीतना है और नाम कमाना है फिर चाहे नाम बदनाम ही क्यों न हो, क्या फर्क पड़ता है। वो कहते हैं न कि बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा। ख़ैर, वरुण ज़हर उगल रहे थे, लोग तालियां बजा रहे थे। बीजेपी के कुछ कट्टरपंथी आला नेताओं के लबों पर भी हल्की-हल्की मुस्कराहट ज़रूर तैर रही होगी क्योंकि उनकी जमात में एक और आ खड़ा हुआ था। पुरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर । लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=113&tid=807

    1 टिप्पणी:

    1. अपनी जानकारी दुरुस्त कर लें , जब विरासत ही मिल रही है ,तो उसे जीतने के लिए जद्दोज़हद करने की ज़रुरत नहीं होती । क्या आपने अबू आज़मी ,अमरसिंह , राम विलास पासवान और इन जैसे कई दँगा भड़काऊ लोगों के बयान कभी नहीं सुने । हिन्दू होते ही हैं डरपोक और दब्बू । मीडिया के टॉमी अपने आकाओं के इशारे पर वरुण पर "छू" हो गये । लगे माहौल बनाने । वैसे ये सब इस नवोदित नेता के ही हक में जाने वाला है । सोनिया मैडम की बौखलाहट का नतीजा जान पड़ता है ये हो हल्ला । बेचारा राहुल बाबा इतनी मेहनत मशक्कत के बाद पूरी सरकारी ताकत झोंक देने और पूरे प्रचार तंत्र को खरीद लेने के बावजूद वो मकाम अब तक हासिल नहीं कर सका ,जो निर्वासित जीवन जी रहे इस कल के छोकरे ने चंद दिनों में हासिल कर लिया । कहानी घर- घर की ....।

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