प्रेम नहीं तो कुछ नहीं : एक मौजूं विचार

Posted on
  • by
  • Himanshu Pandey
  • in
  • Labels: , ,
  • ईसाई धर्म के महान आचार्य संत पाल (St. Paul ) का यह विचार प्रेम के विराट प्रभाव का उल्लेख करता है । आज इस प्रेम-दिवस (Valentine Day) पर इस विचार का यहाँ प्रस्तुतीकरण मौजूं होगा -

    "यदि मैं मनुष्यों और फ़रिश्तों की जबान में बात करता हूँ, पर प्रेम से वास्ता नहीं रखता तो मैं केवल एक व्यर्थ बजने वाला ढोल हूँ । और यदि मैं भविष्य-दर्शन की क्षमता रखता हूँ और सभी रहस्यों तथा ज्ञान का अधिकारी हूँ, यदि मैं पूर्ण आस्थावान भी हूँ और पहाड़ों को हटाने की शक्ति भी रखता हूँ, परन्तु प्रेम नहीं करता तो मेरा सब कुछ व्यर्थ है। यदि मैं अपना सर्वस्व दान कर दूँ, अपनी देंह को भी जलाने के लिये दे दूँ, लेकिन प्यार से मुख मोड़ता हूँ, तो मुझे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता ।"
    चित्र सौजन्य : http://www.catholic.org

    4 टिप्‍पणियां:

    1. प्रेम की अभिव्यक्ति अच्छी है। धन्यवाद!

      जवाब देंहटाएं
    2. जो प्रेम के खुद सागर हैं
      उन्‍होंने सराहा है इसे जी
      हिमांशु जी प्रेम की है जी बात।

      जवाब देंहटाएं
    3. सुन्दर विचार.हर कोई इससे सहमत होगा.

      जवाब देंहटाएं
    4. तो क्या सेंट पॉल भी वेलेन्टिन-डे मनाते थे? वे किस 'प्रेम' की बात कर रहे हैं? पाशविक प्रेम की या मानवी-प्रेम की? कहीं वे आध्यात्मिक-प्रेम की बात तो नहीं कर रहे? इस कथन का प्रसंग/सन्दर्भ क्या था?

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz