नारद मुनि का नारायणनामा "दीपावली विशेष" (गरिमा)

नारद मुनि नारायण, नारायण का जाप करते हुए पहुँच गये अपने प्रभु के लोक, यानि कि वैकुण्ठलोक। वहाँ शेष शैया पर भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे, और विष्णुप्रिया भगवती लक्ष्मी चरण कमल चापन में मग्न थीं। नारद मुनि थोडा ठहरे, फिर सोचा कि प्रभु के विश्राम मे विघ्नडारक न बन जाऊँ, इसलिये चुपचाप चल पड़ने को उद्यत हुए। प्रभु को अपने भक्त का इस तरह से जाना नागवार गुजरा, और उन्होंने नारद मुनि को रोका...
प्रणाम निवेदन के बाद नारद मुनि ने अपने आने का उद्देश्य बताया "प्रभु धरती पर, इंसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, हर जगह भुखमरी, महामारी, विस्फोट, गरीबी जैसे रावण अपने दसों मुँह खोले इंसानों को अपनी उदराग्नि मे भस्म करने को तैयार खड़े हैं। प्रभु आप तो प्रत्येक युग में, इंसानो की रक्षा के लिये धरती पर अवतरित होते हैं, फिर कलयुग आपके स्‍नेह से वंचित क्यों हैं ?"


देवर्षि, हम कलयुग में भी मृत्युलोक पर अवतरित होंगे, पर अभी सही वक्त नहीं आया है, कलयुग को थोड़ा सा इन्तजार और करना होगा" भगवान ने सांत्‍वना देते हुए कहा।


प्रभु तब तक तो देर हो जायेगी, धरती नष्ट हो जायेगी, आपको अभी ही कुछ करना होगा... पर नारद मुनि भी जानते हैं कि प्रभु ब्रह्माजी के बनाये नियम में उलटफेर नहीं कर सकते, वे अपने निश्चित वक्त पर ही अवतरित होंगे लेकिन समस्या का समाधान भी जरूरी है। आज्ञा लेकर भगवती ने निवेदन किया कि, तब तक वो और गणेश जी धरती पर जाकर मनुष्यों को धन और बुद्धि दे आते हैं, जिससे कुछ हद तक तो उनके संकटों का निवारण हो जायेगा। ब्रह्माजी को भी इस प्रस्ताव पर कोई खास आपत्ति नहीं हुई, बस उन्होंने इतना भर कहा कि, सबकुछ ठीक नहीं करना क्योंकि तब प्रभु का अवतार कैसे होगा ? प्रभु का अवतार नहीं होगा तो विधाता के लेख में खामी आ जायेगी.. फिर मृत्युलोकवासी उनके कृति को अमिट नही कह सकेंगे।
भगवती लक्ष्मी और गणेश जी ने दीपावली के शुभ दिन को ही अवतरित होने का मन बनाया, इसी दिन वो अपने भक्तों की परेशानी को दूर करके अपने अपने धाम लौट जायेंगे, उन्‍होंने ऐसा विचार कर लिया।
दीपावली के दिन में तो उनकी पूजा हुई नहीं, वो आये और लौट गये, लोग एक दूसरे से मिलने में, अपने अपने तोह्फों को अच्छा बताकर दूसरों के तोहफे घटिया बतलाने में व्‍यस्‍त थे और इसी में रस पा रहे थे। दोनों अपना सा मुँह बनाकर लौट गये, नारद जी ने उन्हें बताया कि पूजा तो रात को होती है, इसलिये आप दोनों रात को ही जावें।
रात गये वे दोनों धरती लोक पर उतरने को तैयार हुए, पर ये क्या, बाहर से ही वायुमंडल प्रदुषित हो चुका था, साँस लेने मे काफी तकलीफ हो रही थी, आकाश मार्ग धूल धुयें से अटा पड़ा था, जैसे तैसे बहुत मुश्किल से उन्होंने यात्रा जारी रखी, और वो डर भी रहे थे कि जाने धरती निवासियों पर किस दानव ने आक्रमण कर दिया होगा, खैर जैसे जैसे वो निकट पहुँचते गये, परेशानी बढ़ती गयी, अब तो आग के गोलों से भी सामना करना पड़ रहा था, कानो को फोड़ती आवाजें, आगे के गोले, दम निकालता धुआँ, एकबारगी तो उन्‍हें महसूस हुआ कि पृथ्‍वी पर पांचवां विश्‍वयुद्ध छिड चुका है। खैर ....... जैसे तैसे करके वे धरती पर पहुंच ही गये, वे सोच रहे थे कि ऐसे माहौल मे जब उन्हीं के लिये इतनी मुश्किलें हो रही हैं तो बेचारे इन्सान कैसे जिंदा होंगे ? पर धरती पर आकर पता चला कि ये सारा तमाशा इंसानों ने खुद ही खड़ा किया है।
हद तो तब हो गयी जब मस्ती के नाम पर एक बच्चे ने गणेश जी और लक्ष्मी जी के ठीक सामने बम फोड़ दिया और हँसने लगा, पर इनकी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी पर वे क्‍या करते। आखिर हैं तो ये बच्‍चे ही।

बच्चों के साथ बड़े भी उनका उपहास उड़ाने से ना चूके... ये सब देखकर दोनों का मन अत्यंत ही दुखी हुआ और वे अपने धाम लौट गये।
भगवान विष्णु से दोनों ने मिलकर कहा कि प्रभु आप धरती पर अवतरित मत होईयेगा, क्योंकि इस बार इंसान का दुश्मन कोई दानव नहीं वे खुद हैं... भला जो खुद जलना चाहे तो उसे कोई कब तक बचा सकता है... और उन्होंने पूरा वृतांत कह सुनाया... त्रिदेव भी इस वृतांत को सुनकर अपनी बनाई इस सृष्टि की करतूतों से शर्मसार हुए... और नारद मुनि तो इतने व्यथित हुए कि कुछ देर तक वो नारायण जाप करना भी भूल गये।

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achchi lekh aapko or aapke sahparivar ko dipavli ki hardik shubhkamnaye!

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  2. वाह, सही लिखा है!! पटाखों के नाम पर सबसे अधिक प्रदूषण दीपावली पर ही होता है। कीमत कम रखने के लिए साल दर साल इनमें प्रयोग होने वाले बारूद और मसाले की गुणवत्ता गिरती जा रही है!! जहाँ मैं बचपन में खूब पटाखे चलाया करता और गोला बम तक से दम नहीं घुटता था वहीं आज ये हाल है कि बिजली बम तक का धुआं झेला नहीं जाता!! :( :(

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  3. बेहतरीन!!

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    समीर लाल
    http://udantashtari.blogspot.com/

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  4. वाह, अति सुंदर!! दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.

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  5. Bahut sundar sabd chitran. Deepavali ke deepakon ka prakash aapke jeevan path ko aalokit karta rahe aur aapke lekhan ka margdarshan karta rahe, yahi shubh kamnayen.

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  6. ईश्वर का तो नाम है,बात कही है खूब.
    अपने पापों में स्वयं, मनुज गया है डूब.
    मनुज रहा है डूब,दुःख-दरिया में ऐसा.
    मोह-भँवर में ढूंढ रहा है रुपया-पैसा.
    कह साधक कवि बचा स्वयं को जरा संभल कर.
    वरना कुछ ना कर पायेगा तेरा ईश्वर.

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  7. बढ़िया, परन्तु विष्णु जी हर समय पैर क्यों मलवाते रहते हैं ?
    आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
    घुघूती बासूती

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  8. बहुत अच्छा लिखा है। पहले पढ़ लिये होते तो बच्चों को पढ़ाकर पटाखे के पैसे बचा लिये होते। :)

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  9. सही और अच्छा लिखा है । आपको और आपके परिवार को दिवाली की बधाई ।

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  10. बेहतरीन!!

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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