हिचकोले खा रहा देखो बाजार
चल रही हो ज्यों गर्भिणी नार
पंचर टायर पर चल रही कार
सरपर पड़ रही ओलों की मार
बाजार नहीं अब तो है बेजार
एफआईआई जिसका कलाकार
औंधे मुंह गिरे सांड खूब सोले
बाजार पेटभर अब तू भी रोले
सांड बेचारा क्या मुंह से बोले
जब लग रहे हों तेज हिचकोले
हि हि हिचकोले
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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कविता,
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सांड
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क्या बात है!!बढिया!
जवाब देंहटाएंबुरा हाल है अविनाश जी ....मजेदार कविता
जवाब देंहटाएंSAR Full Form
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