सीखना

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • ठोकरें खाकर सीखना ही है असली सीखना
    सीखे हुए को कभी नहीं मन में अपने भीचना
    सीखते सिखाते जाओ कदम आगे बढ़ाते जाओ
    हाथ से हाथ, मन से दिल मिलाते जाओ
    धूम और धमाल मचाते गुनगुनाते जाओ

    यह पंक्तियां उपर्युक्त ब्लागर के पत्र के उत्तर में रची गई हैं। श्री हरिराम के ब्लाग पर जाने का लिंक नीचे दिया गया है।

    http://hariraama.blogspot.com

    2 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत अच्छा मित्र, ऐसे ही लिखते रहें। धीरे-धीरे पंक्तियां बढ़ायें। हमने भी यही किया था।

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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