2011 साल का पहला सवाल : आप अपनी पसंद के एक हिन्‍दी ब्‍लॉगर के ब्‍लॉग का नाम बतलाइये

इतना प्‍यारा तो होना चाहिए ब्‍लॉग
पहले आप संभाल लें
शुभ मंगलकामनायें
पोस्‍टों पर टिप्‍पणी के
आश्‍वासन के साथ

अब आप मुक्‍त हैं
साल गया
बवाल कटा

आपने अब ब्‍लॉगर का
नहीं लिखना है नाम
सिर्फ ब्‍लॉग का
लिखें नाम
यूआरएल भी न दें

पर वो ब्‍लॉग होना चाहिये पसंदीदा
आपका ?

मेरा होता
तो मैं आपसे क्‍यों पूछता
नये साल की खूब सारी
प्‍यारी-प्‍यारी
स्‍नेहभरी
नेहपगी
आदरयुक्‍त
टिप्‍पणीदार
शुभकामनायें देकर
लौट जाता
आप आवाज लगाते
तब भी लौट कर न आता
आपको लगता
कि गये साल के साथ चला गया

जा तो रहा था
पर नये के साथ
लौट कर लौट आया
उसे गले लगाया
पहले से गला छुड़ाया
अब इससे गले मिल रहा हूं
जफ्फी पा रहा हूं

नई दिल्‍ली में
23 जनवरी 2011 को
एक ब्‍लॉगर मिलन/सम्‍मेलन
या कार्यशाला
करने का विचार है


जिसमें गर्म चाय का जिम्‍मा
दीपक बाबा जी का है
जो वे 13 नवम्‍बर 2010 की ठंडी चाय
के एवज में
करने का वायदा कर चुके हैं

अब यह नहीं मालूम
गर्म चाय पीने के लिए
उनके घर के आस पास ही न जाना पड़े
मुझे तो यह भी नहीं मालूम
उनका घर कहां है
धरती पर है
इतना पता है
वो धरती दिल्‍ली में है
पर दिल्‍ली
दिल की तरह खूब बड़ी है
खूब खुली है।

हो सकता है
आश्रम हो बाबा का
बाबा ब्‍लॉगरों के
कुछ टिप्‍पणीगुर तो
मिलेंगे ही।
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शब्दों का सफर

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जाते जाते साल के एक अंतिम प्रश्‍न हिन्‍दी ब्‍लॉगरों से ?????

मेरा नाम मत लेना
सिर्फ उस एक हिन्‍दी ब्‍लॉगर का नाम बतलायें, जो आपको बिल्‍कुल पसंद नहीं है और आप उसका नाम लेने का साहस रखते हैं। बहादुर हिन्‍दी ब्‍लॉगरों को एक जनवरी दो हजार ग्‍यारह के दिन प्रशस्ति पत्र से सम्‍मानित किये जाने की व्‍यवस्‍था की गई है। जो कारण बतलाने का साहस रखते हों उन्‍हें महा-सम्‍मान से नवाजा जायेगा। घबराने, हिचकिचाने वाले इधर का रुख न करें तो उनके ब्‍लॉग के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहतर रहेगा।
टिप्‍पणियों पर मॉडरेशन लागू है। इस पोस्‍ट पर आई हुई टिप्‍पणियां कल रात को 12 बजे के बाद जारी की जायेंगी। इसकी वजह से नुक्‍कड़ ब्‍लॉग की अन्‍य टिप्‍पणियां नहीं रूकेंगी, प्रयास रहेगा कि उन्‍हें हाथों-हाथ जारी कर दिया जाये।

रेखाचित्र गूगल सर्च से साभार। इसका किसी हिन्‍दी ब्‍लॉगर से मिलना आकस्मिक ही हो सकता है।
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वे पांच हिन्‍दी ब्‍लॉगर जिन्‍हें मैं कभी भुला नहीं सकता ?????

बतला नहीं रहा हूं
जानना चाह रहा हूं
या मान सकते हैं
पूछ रहा हूं

क्‍या है आपके पास
ऐसी कोई सूची
मन में ही हो
तो भी जारी कीजिए

नव वर्ष में
हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को
सार्थकता प्रदान कीजिये

पंगे लेना
ध्‍येय नहीं है
विवाद पैदा करना
मंतव्‍य नहीं
न ही चाहता हूं
टिप्‍पणी बटोरना

आप बिना बतलाये
जा सकते हैं
अपने ब्‍लॉग पर
पोस्‍ट लगा सकते हैं

पर सिर्फ सीजन न बने
पूरा रीजन साथ में जमे
कि क्‍यों नहीं भुला सकते ?

नव वर्ष के आगमन पर
सिर्फ बरसात ही न हो
कुछ सार्थक शुरूआत हो

आओ अब से कुछ ऐसा करें
हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग बिसराये न बने
न कि सिर्फ देते रहें
लेते रहें
पाते रहें
मन में खुशियाते रहें
कि पाई हैं ढेरों शुभकामना
भला शुभ से कब
किसने किया है मना
पर शुभ करो
न कि सिर्फ
बातों से ही पेट भरो।

साल ग्‍यारह
एक और एक ग्‍यारह का  नहीं
दो हजार ग्‍यारह का है
बने हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की ऐसी मिसाल
उज्‍ज्‍वल हो हिन्‍दी का दिव्‍य भाल।
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ब्‍लॉग पढ़ने के लिए खूब सारे गेट - आप टिप्‍पणी भी कर सकते हैं ब्‍लॉग पोस्‍ट पर

http://blogbukhar.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
इतने सारे गेट
प्रवेश का नहीं है
इनमें कोई रेट

बस घुसें
करें क्लिक
और पढ़ें

मन करे
तो करें टिप्‍पणी
बिना टिप्‍पणी
दिए भी आ सकते हैं

यह सुविधा भी
फ्री है
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वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो

(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/

वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो
राजा और सुरेश कलमाडी जैसा बेईमान बनो
पराई नार और पराया धन पर जितना हो नजर डालो
एक नहीं कई नीरा को रातों रात बना डालो
जनता का पैसा है, इसे अपना समझ घर में घुसा डालो
कागजों और फाइलों का क्या है
जब चाहे गुम कर डालो
पैसे का खेल है,
छानबीन का तमाशा कर डालो
सीने पे ठोक के हाथ
अपने आप पे गुमां करो
सरकार और विपक्ष का क्या है,
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे
खुद भी खाओ और इन्हें भी खिला डालो
क्योंकि
ये आदत तो वो आदत है,
जो रातों-रात अपना घर भरे दे, भर दे, भर दे रे..
कि कोई नया गेम शुरू करवा दो
बाकी लोगों को भी भ्रष्टाचार और घोटाले का मौका दो।
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तीन कवियों को मिलेगा सेतु साहित्‍य सम्‍मान : कहीं आप ही तो नहीं हैं

http://epaper.bhaskar.com/cph/epaperpdf//25122010//24shimla-pg3-0.pdf
भास्‍कर शिमला में
प्रकाशित हुआ है समाचार
देख तो क्लिक करके
और पूरा पढ़ लो
फिर जानोगे
बिल्‍कुल पक्‍की है।
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"ब्लॉगर मीट का आयोजन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

प्रिय ब्लॉगर मित्रो!
अपार हर्ष के साथ आपको सूचित कर रहा हूँ कि नववर्ष 2011 के आगमन पर देवभूमि उत्तराखण्ड के खटीमा नगर में 
एक ब्लॉगरमीट का आयोजन 9 जनवरी, 2011, रविवार को किया जा रहा है!
इस अवसर पर आप सादर आमन्त्रित है।
विस्तृत कार्यक्रम निम्नवत् है-
खटीमा की दूरी निम्न नगरों से निम्नवत् है-
मुरादाबाद से 160 किमी
रुद्रपुर से 70 किमी
बरेली से 95 किमी
पीलीभीत से 38 किमी
हल्द्वानी से 90 किमी
देहरादून से 350 किमी
हरिद्वार से 290 किमी
दिल्ली से 280 किमी
लखनऊ से 280 किमी है।
♥ दिल्ली आनन्द विहार से दो दर्जन रोडवेज की बसें प्रतिदिन खटीमा के लिए आती हैं। कश्मीरीगेट से प्रतिदिन दो प्राईवेट लग्जरीबसें 2बाई2 रात को 9 बजे खटीमा के लिए चलती हैं, जो सुबह खटीमा आ जाती हैं। 
जिनका किराया रोडवेज से कम है।
♥ दिल्ली से शाम को 4 बजे सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस काठगोदाम के लिए चलती है, -जो रात्रि 8ः30 पर रुद्रपुर आ जाती है। रुद्पुर से खटीमा मात्र 70 किमी है। रोडवेज की बसे यहाँ से खटीमा के लिए चलती रहती हैं। इसके अलावा प्रातः 9 बजे ओर रात को 9-30 पर भी ट्रेन रुद्पुर के लिए मिलती हैं।
♥ लखनऊ से ऐशबाग स्टेशन से खटीमा के लिए नैनीताल एक्सप्रेस में 3 रिजर्वेशन कोच टनकपुर के लिए लगते हैं। जो खटीमा प्रातःकाल पहुँच जाते हैं।
♥ लखनऊ से बरेली बड़ी लाइन की ट्रेन तो समय-समय पर मिलती ही रहती हैं। बरेली से रोडवेज की बसें बरेली सैटेलाइट बसस्टैंड से अक्सर मिलती रहती हैं। जो दो घण्टे में खटीमा पहुँचा देती हैं।
♥ देहरादून से रात को 10 बजे काठगोदाम एक्सप्रेस चलती है। जो प्रातः 5 बजे रुद्पुर पहुँच जाती है। यहाँ से रोडवेज की बस डेढ़ घण्टे में खटीमा पहुँचा देती है।

♥ हरिद्वार से भी 11 बजे रात्रि में काठगोदाम एक्सप्रेस पकड़ कर आप रुद्पुर उतर कर खटीमा की बस से आ सकते हैं।
♥ हरिद्वार और देहरादून से बहुत सी बसें खटीमा के लिए चलती हैं।
मान्यवर मित्रों! 
आप खटीमा 9 जनवरी को अवश्य पधारें!
यहाँ सिक्खों का गुरूद्वारा श्री नानकमत्तासाहिब में मत्था टेकें।
माँ पूर्णागिरि के दर्शन करें। नेपाल देश का शहर महेन्द्रनगर यहाँ से मात्र 20 किमी है।
आप नेपाल की यात्रा का भी आनन्द लें।
मैं आपकी प्रतीक्षा में हूँ!
अपने आने की स्वीकृति मेरे निम्न मेल पते पर देने की कृपा करें।

Email- rcshashtri@uchcharan.com

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा, 
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
Phone/Fax: 05943-250207, 
Mobiles: 09368499921, 09997996437

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तेरे हाथों में वो जादू है...

(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/

प्याज को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की चुस्ती-फुर्ती देखकर मन गदगद हो गया। आनन- फानन में 400 सरकारी केंद्रों पर प्याज की ब्रिकी भी शुरू कर दी गई। लेकिन दिल्ली सरकार का यह कदम मन में एक डर पैदा कर रहा है। सुना है दिल्ली सरकार के हाथों में गजब का कमाल है, जिस चीज को वो बेचने का निर्णय कर लेती है, वो आम से खास हो जाती है और यही मेरे डर का कारण है। इस बात की चिंता मुझे लगातार सताए जा रही है कि प्याज भी कहीं खास न बन जाए और आम लोगों से दूर होकर केवल खास-खास थालियों में ही न दिखने लगे। पहले तो रोटी-दाल से हाथ धो लिया, अब ऐसा न हो कि रोटी-प्याज-नमक से भी हाथ धोना पडे। बडे-बूढे कहते हैं कि हमारी दिल्ली सरकार बहुत ही खास है। पहले आटा बेचना शुरू किया तो आटा महंगा हो गया, उसके बाद दाल बेचना शुरू किया तो लोगों की थालियों से दाल गायब हो गई। अब प्याज बेच रही है तो आम लोगों के किचन में बचेगा क्या। यही नहीं इनके नक्शे कदम पर डेयरीवाले भी हैं। जिन डेयरियों पर इन्हें बेचने का निर्णय किया जाता है वहां रातों-रात दूध महंगा हो जाता है। सरकारी केंद्रों पर सरकार द्वारा 40 रुपए प्याज बेचा जाना, क्या इस कीमत को सस्ता कहा जा सकता है और यदि नहीं तो हम सब सरकार के इस कदम को वाह-वाही क्यों दे रहे हैं। मातम मनाओ कि अब जल्द ही प्याज भी चंदा मामा जैसी दूर की चीज हो जायेंगे।
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मुद्दों पर हिंदी ब्लॉगजगत की रणनीति और वर्ष की हलचलें

नि:संदेह भारत ने एक संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के रूप में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की । आई टी सेक्टर में दुनिया में उसका डंका बजा । चिकित्सा,शिक्षा, वाहन, सड़क, रेल, कपड़ा, खेल, परमाणु शक्ति, अंतरिक्ष विज्ञान आदि क्षेत्रों में बड़े काम हुए । परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र का रुतवा भी हासिल हुआ । तेजी से यह देश आर्थिक महाशक्ति बनने को अग्रसर है । मगर राष्ट्र समग्र रूप से विकसित हो रहा है इस दृष्टि से विश्लेषण करें तो बहुत कुछ छूता हुआ भी मिलता है, विकास में असंतुलन दिखाई देता है एवं उसे देश के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने में सफलता नहीं मिली है । जिससे भावनात्मक एकता कमजोर हो रही है , जो किसी राष्ट्र को शक्ति संपन्न , समृद्धशाली,अक्षुण बनाए रखने के लिए जरूरी है । यह समस्या चिंता की लकीर बढाती है ।

हमारे देश में इस वक्त दो अति-महत्वपूर्ण किंतु ज्वलंत मुद्दे हैं - पहला नक्सलवाद का विकृत चेहरा और दूसरा मंहगाई का खुला तांडव । जहां तक ब्लॉग पर प्रमुखता के साथ मुद्दों को प्रस्तुत करने की बात है, इस वर्ष प्रमुखता के साथ छ: मुद्दे छाये रहे हिंदी ब्लॉगजगत में । पहला बिभूती नारायण राय के बक्तव्य पर उत्पन्न विवाद, दूसरा नक्सली आतंक,तीसरा मंहगाई,चौथा अयोध्या मामले पर कोर्ट का फैसला,पांचवां कॉमनवेल्थ गेम में भ्रष्टाचार और छठा बराक ओबामा की भारत यात्रा ।इन्हीं छ: मुद्दों के ईर्द-गिर्द घूमता रहा हिंदी ब्लॉगजगत पूरे वर्ष भर ।

कौन-कौन से मुद्दों पर हिंदी ब्लॉगजगत ने कैसी रणनीति बनायी, सार्वजनिक रूप से क्या कहा और भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर क्या प्रतिक्रिया रही हिंदी ब्लॉग जगत की, जानने के लिए चलिए चलते हैं परिकल्पना पर जहां आजकल वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण प्रकाशित किये जा रहे हैं -
वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-१ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-२ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-३ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-४ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-५ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-६ )

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण (भाग-७ )
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ट्विट करें और प्‍याज पायें : प्‍याजप्रसन्‍न हो जायें इंटरनेटधारी

प्‍याज ही खुशी
प्‍याज ही खुशी
प्‍याज जिंदगी
प्‍याज है तो
प्‍याजप्रसन्‍न हैं सब

आगे पढि़ए अब
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चिट्ठाजगत स्‍वस्‍थ और सानंद है अब : आप भी आनंद लीजिए

चिट्ठाजगत आया, ब्‍लॉगर खुश 
जी हां
अब स्‍वस्‍थ है
आनंदित है
आप भी आनंदित हो आयें

चिट्ठाजगत पर
अपनी पोस्‍टें
अपनी नहीं
सबकी पोस्‍टें देखें
पढ़ें और टिप्‍पणियायें

आप सभी को
चिट्ठाजगत की वापसी की
शुभ मंगलकामनायें

ब्‍लॉगर प्रसन्‍न हैं
मुदित प्रत्‍येक मन है
नेक विचार आसन्‍न हैं

साल अभी बीता नहीं है
अभी मौजूद यहीं है
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हारे हुये का साथ देने वाला - खाटूश्यामजी




खाटूश्यामजी राजस्थान के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का जगविख्यात मन्दिर है।
श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे। उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुये तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जाग्रत हुयी। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब माँ को हारे हुये पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने लीले घोडे, जिसका रंग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभुमि की और अग्रसर हुये।
सर्वव्यापी कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिये उसे रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उडायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में ही आयेगा। यिद तीनो बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। इस पर कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस पीपल के पेड के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खडे थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और इश्वर को स्मरण कर बाण पेड के पत्तो की और चलाया।
तीर ने क्षण भर में पेड के सभी पत्तों को भेद दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होनें अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराये कि वह युद्ध में जिस और से भाग लेगा जो कि निर्बल हो और हार की और अग्रसर हो। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है, और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
ब्राह्मण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा. कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की द्डता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और कृष्ण के बारे में सुन कर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, कृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।
उन्होनें बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमीं की पूजा के लिये एक वीर्यवीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यक्ता होती है, उन्होनें बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होनें अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभुमि के समीप ही एक पहाडी पर सुशोभित किया गया, जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी खींचाव-तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभुमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू में दफ़नाया गया। एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी, बाद में खुदायी के बाद वह शीश प्रगट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिय गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।


डिस्क्लेमर  - इस आलेख को विकीपीडिया से लिया गया है. फोटो गूगल से साभार ली गई है. 

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एक ऐसा आयोजन जिसमें ब्‍लॉगर साथी अवश्‍य पहुंचना चाहेंगे

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लिखा है जहां।















वहां पर मैं मिलूंगी आप सबसे


















रविवार को शाम छह बजे आपने हिन्‍दी भवन में आना है।
पुलिस, प्रेस, पब्लिक अवार्ड समारोह है
हो सकता है आपको भी मिल रहा हो
यह तो वहां आकर ही मालूम होगा।

जो आ रहे हैं वे टिप्‍पणी में बतलायेंगे
तो उनके लिए पत्रिका की प्रतियां
अतिरिक्‍त लायेंगे
पत्रिका में आप भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध
संघर्ष का ऐसा जज्‍बा पायेंगे
आप भी इससे जुड़ना चाहेंगे

तो अभी से आरंभ कीजिए
पहले टिप्‍पणी कीजिए
फिर वहां पहुंचिए
हमसे मिलिए
पवन कुमार जी भी मिलेंगे
जो लिखते हैं भूत
पर वे वर्तमान हैं
आप स्‍वयं देख लेना।
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क्या हम कुछ दिन प्याज खाना बंद नहीं कर सकते..?

काट रही है उसी को जो इसको खाता है
क्या प्याज इतना ज़रुरी है कि वह हमारे दैनिक जीवन पर असर डाल सकता है? प्याज के बिना हम हफ्ते भर भी काम नहीं चला सकते? यदि हाँ तो फिर प्याज के लिए इतनी हाय-तौबा क्यों?और यदि नहीं तो फिर व्रत/उपवास/रोज़ा/फास्ट या आत्मसंयम का दिखावा क्यों? कहीं हमारी यह प्याज-लोलुपता ही तो इसके दामों को आसमान पर नहीं ले जा रही?
मेरी समझ में प्याज न तो ऑक्सीजन है,न हवा है, न पानी है और न ही भगवान/खुदा/गाड है कि इसके बिना हमारा काम न चले. क्या कोई भी सब्ज़ी इतनी अपरिहार्य हो सकती है कि वह हमें ही खाने लगे और हम रोते-पीटते उसके शिकार बनते रहे? यदि ऐसा नहीं है तो फिर कुछ दिन के लिए हम प्याज का बहिष्कार क्यों नहीं कर देते? अपने आप जमाखोरों/कालाबाजारियों के होश ठिकाने आ जायेंगे और इसके साथ ही प्याज की कीमतें भी......
पूरा पढने के लिए देखें: http://www.jugaali.blogspot.com/
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व्‍यंग्‍यकार के स्‍वर में सुनिए सोपानस्‍टेप के दिसम्‍बर अंक में प्रकाशित व्‍यंग्‍य : गोरी तेरा गांव बड़ा प्‍यारा, मैं तो गया मारा, आ के यहां रे ....

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कबाड़ से लाड-लड़ावें सारे : 21 दिसम्‍बर 2010 को डीएलए में प्रकाशित

डीएलए
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तो टिप्‍पणी करें
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हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के हित की बातें : व्‍यथित न हों : सतर्क रहें

हाथ का हलवा मत बनने दें
डर लग रहा है तो डरें, पर गलत तरह से काम न करें


ज्यादा देर तक कंप्यूटर काम करते समय यदि हम अपने बैठने का, माउस पकड़ने का तरीका व की-बोर्ड का इस्तेमाल करने का सही तरीका नहीं अपनाते हैं तो Carpal Tunnel Syndrome नामक रोग के शिकार हो सकते है अतः इस रोग से बचने के लिए हमें चाहिए कि हम कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक कार्य करते हैं तो इसके इस्तेमाल का सही व सुरक्षित तरीका अपनाएं

Read more: http://www.gyandarpan.com/2010/06/blog-post_26.html#ixzz18k0ntJ7G

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दैनिक सांध्‍य टाइम्‍स, दिल्‍ली में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन की खबर

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अविनाश वाचस्‍पति से गिरीश बिल्‍लौरे 'मुकुल' जी का वीडियोकास्‍ट


जी हां
वीडियोकास्‍ट
पॉडकॉस्‍ट आप सुनते रहे हैं

पॉडकॉस्‍ट और
वीडियोकास्‍ट के प्रयोग
हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में
करने का श्रेय
भाई गिरीश बिल्‍लौरे 'मुकुल'
जी को जाता है

आप इसमें चर्चित हिन्‍दी ब्‍लॉगर
अविनाश वाचस्‍पति जी को
सुन सकते हैं
देख सकते हैं
और अपनी प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं

इस नई विधा
और भी नई विधाओं से
हिन्‍दी का जुड़ना
हिन्‍दी को जन मन में
बसा रहा है।
सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए
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दिल्ली का मौसम सुहाना, मीटिंग-ए-ब्लॉगराना....खुशदीप

शेर सिंह ललित शर्मा का दो दिन पहले फोन पर आदेश हुआ था कि दिल्ली में 19 दिसंबर को शाम छह बजे ब्ल़ॉगर मीटिंग है...ललित भाई ने साथ ही एक ऐसा लालच भी रख दिया कि किसी के लिए ठुकराना मुश्किल था...ललित जी के मुताबिक रायपुर से आए ग्राम चौपाल ब्लॉग के अशोक बजाज और भिलाई से ब्लॉगिंग के सिंह इज़ किंग बी एस पाबला  भी मीटिंग में मौजूद रहेंगे...मीटिंग भी दिल्ली के सबसे प़ॉश इलाके चाणक्यपुरी के छत्तीसगढ़ भवन में थी...अब ललित जी ने तो आना नहीं था वो अभनपुर छत्तीसगढ़ घर से ही रिमोट कंट्रोल से मीटिंग से जुड़े थे...हमारी कुल्फी जमाने के लिए उन्होंने कड़ाके की ठंड में मीटिंग का टाइम रखा...शाम छह बजे...लेकिन बैठक में जो गर्मजोशी थी उससे सारी ठिठुरन दूर हो गई...

बाएं से दाएं...संजू तनेजा, राजीव कुमार तनेजा, सुरेश कुमार यादव, पदम सिंह, शाहनवाज़ सिद्दीकी, अविनाश वाचस्पति, कनिष्क कश्यप, अशोक बजाज, खुशदीप सहगल, बीएस पाबला, कुमार राधारमण और जयराम विप्लव
ललित जी ने मीटिंग के दौरान फोन पर सबको शुभकामनाओं का संदेश दिया...संगीता पुरी जी ने भी बोकारो से  और काशी से डॉ अरविंद मिश्र ने फोन पर सबसे बात की...संयोग से संगीता जी और अरविंद जी दोनों का ही आज जन्मदिन...मीटिंग में जितने भी ब्लॉगर मौजूद थे, सबने संगीता जी, अरविंद मिश्र  जी को बधाई दी...

बैठक में जलपान के साथ कब तीन घंटे बीत गए किसी को पता नहीं चला...बैठक में जो तय हुआ, वो तो अब विस्तार से सब पोस्ट लिखेंगे ही, लेकिन इस पर सब राजी थे कि ब्लॉगिंग के लेवल को अब ऊपर उठना चाहिए....व्यक्तिगत ब्लॉगिंग से ऊपर उठ कर सामाजिक सरोकारों के लिए भी अब कुछ करना चाहिए...अशोक बजाज जी ने वादा किया कि उनसे जो भी संभव हो सकेगा वो वृद्ध कल्याण जैसे सरोकारों के लिए हर मुमकिन सहयोग देंगे...

मीटिंग में मौजूद रहे ब्लॉगरगण-

अशोक बजाज- ग्राम चौपाल

बीएस पाबला- जिंदगी के मेले


अविनाश वाचस्पति- नुक्कड़


सुरेश यादव- सार्थक सृजन


जयराम विप्लव- जनोक्ति


शाहनवाज़ सिद्दीकी- प्रेमरस


राजीव कुमार तनेजा- हंसते रहो


संजू तनेजा- आइना कुछ कहता है

पदम सिंह- पद्मावलि


कनिष्क कश्यप- विचार मीमांसा, ब्लॉग प्रहरी


रेवा राम यादव- भावी ब्लॉगर


कुमार राधारमण-स्वास्थ्य सबके लिए




और रिपोर्ट देने वाला मैं तो था ही- खुशदीप सहगल- देशनामा



इससे आगे की रिपोर्ट यहां पढ़िए-



ब्लॉगिंग, सामाजिक सरोकार, छत्तीसगढ़ भवन बैठक...खुशदीप

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ये चुप्पी कब टूटेगी ?

एक लंबे अंतराल के बाद फिर उपस्थित हूँ |मैं इतने दिनोंतक मौन क्यों हो गई?क्यों मेरी अंगुलिया कीबोर्ड को नहींछूपाई?
आज क्या हुआ कि हाथ फिर से गति पकड़ रहे हैं ?सच सवाल तो बहुत हैं पर उत्तर कहीं नहीं दिखाई देता |क्या आपके साथ भी ऐसा होता है जब आप अचानक चुप हो जाए और आपको ही कारण पता नहीं हो | क्या इन दिनों कुछ भी ऐसा नहीं घटा जिसे मैं आपके साथ बाँट पाती ,या जो घटा उसे इतना निजी समझा गया कि उसे कहने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई|कभी-कभी तो ये अंतराल बहुत सुखद होता है जब आप अपनी ऊर्जा को फिर से संचित कर आ बैठते हैं |
पर सच कहूँ कभी-कभी घटनाओं को पचाने में बहुत समय लग जाता है और हम तुरंत टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं होते ?क्या ऐसा ही होता है पति और पत्नी का रिश्ता कि एक साथी दूसरे के प्रति इतना क्रूर हो जाए कि उसके टुकड़े-टुकड़े कर दे और बच्चों को खबर तक ना हो | क्या ये दंपत्ति फेरों के समय दिए गए वचनों को नहीं सुनते अथवा इन्हें टेकिन फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं /और यदि प्रेम विवाह है तो स्थिति और भी अधिक शोचनीय है |आखिर हम किस प्रेम के वशीभूत होकर अपने लिए जीवन साथी का चयन करते हैं ? क्या विवाह करने का अर्थ केवल सामने वाले को अपने अनुकूल ही बना लेना हैं| क्या एक व्यक्ति अपनी अस्मिता खोकर ही दूसरे में निमग्न हो तो प्यार और कहीं उसने भी अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश की तो हश्र हमारे सामने | आखिर आप जीवन साथी चुन रहे होते है या अपने अहम की तृप्ति के लिए एक गोटी खरीद रहे होते है |जैसा एक चाहता है यदि दूसरा वैसा बन गया तो मामला ठीक और कहीं उसने भी अपनी जिदें अपने अभिमान को या कहें स्वाभिमान को रखना शुरू कर दिया तो सबकुछ खत्म | आखिर क्यों हो जाते हम इतने पजेसिब कि सामने वाले की हर छोटी बड़ी बात हमने चुभने लगती है | शायद हमने कभी सीखा ही नहीं कि आप दो एक हो रहे हैं ना कि एक अपना अस्तित्व खो रहा है | क्या हमारी संवेदनाएं बिलकुल ही मर गई ? हमारे पढ़े-लिखेपन ने ही हमें ऐसा जानवर बना दिया कि छोटे मोटे मुद्दोंपर हम इतने असहनशील हो गए कि हमें सामने वाले को मारना ही रास आया | दर असल हमें इस द्रष्टि से कभी सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई ?बस पढलिख लिए ,नौकरी मिल गई और हमने शादी कर ली| विवाह जैसे महत्वपूर्ण मसले पर इस द्रष्टि से कभी सोचा ही नहीं गया |आखिर विवाह की ढेरों तैयारी के मध्य ये अहम मसला क्यों उपेक्षित छूट जाता है |हम वर और वधु देखते हैं ,उसकी पढाई-लिखाई ,घर ,संस्कार देखते है पर कभी भी यह आवश्यक नहीं समझते कि विवाह से पूर्व भावी जीवन साथियों को उन महत्वपूर्ण मसलों पर चिंतन करनेयोग्य बना दें जिनकी आवश्यकता उन्हें जीवन में हर पल पडती हैं |एम.ए. ,बी.ए. और एम.बी.ए की पढाई पढकर नौकरी तो की जा सकती है ,पैसा तो कमाया जा सकता है पर गृहस्थी चलाने के लिए ,एक दूसरे को समझने के लिए ,उत्तरदायित्व निभाने के लिए जो शिक्षा उसे चाहिए वह तो कभी दी नहीं गई |बस मानलिया गया कि तुम बड़े हो गए हो पढ़-लिख गए हो ,नौकरी पेशे में होतो चलो अब शादी कर देते हैं |और जब ये बच्चे इस जिंदगी को निभाने में असफल हो गए तब कहा जाने लगा अरे भाई अपनी शादी भी नहीं बचा सकें| वे बेचारे क्या करें कभी अपने माता-पिता के दाम्पत्य से सीखते है तो कभी अपने हमउम्र दोस्तों से सलाह लेते हैं | कहीं भी कोई कोशिश इनं विवाह सम्बंधोंको बचाने की नहीं हो रही| यदि बुजर्गों से पूछो तो वे कह देते हैं अरे हमने इतनी निभा ली तुमसे इतना भी नहीं होता |और अब तो एकल परिवार ही अधिक है जहां सब कुछ अकेले ही निपटाना है | सबके जीवन जीने के तरीके अलग-अलग होते हैं | कोई जरूरी नहीं जो आपको बहुत पसंद हो वही दूसरे की भी पसंद हो | फिर भी साथ रहने के लिए कुछ तो कोमन होना जरूरी होता है मसलन एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान ,पारिवारिक कार्यों को मिलबांट कर पूरा करना ,बच्चे की परवरिश का साझा दायित्व ,एक दूसरे के प्रति और उनके सम्बन्धियों के प्रति सामान्य व्यवहार ,सामने वाले के दुःख का अहसास | पर इन गुणो को विकसित करने की तो जिम्मेवारी ही नहीं समझी जाती |बस ले बेटा बडे से कोलेज में एडमीशन ,कर टॉप ,और फिर खोज नौकरी कम से कम लाखोंके पैकेज वाली |बस यहीहम सिखाना चाहते थे और यही उसने सीख लिया |फिर शिकायतें क्यों और किससे / कोई भी व्यक्ति एक दिन में ही बहुत खराब और अच्छा नहीं हो जाता | दिनप्रति दिन का व्यवहार उसके व्यक्तित्व को निर्धारण करता है |अब्बल तो हमारा ध्यान इस ओर जाता ही नहीं और कभी चला भी गया तो इसे बेबकूफी जैसी बातें मानकर नजर अंदाज कर दिया जाता है| हम कितने धैर्यवान है,विपरीत परिस्थितियों में अपने को कितना व्यवस्थित रख पाते है ,हमारा चिंतन कितना सकारात्मक हैकईबार जब हमारा कोई काम बिगड जाता है तो हम अपना विश्लेषण करने के बजाय अपने से कमजोर पर बरस बैठते हैं | बस सारी गलती उसके सर डाली और हो गए मुक्त |पर ऐसा कितने दिन चल पायेगा |कभी तो सामने वाले की सहन शक्ति भी जबाव देजायेगी |फिर आप क्या करेंगे|
समस्या तो अब इतनी गंभीर होती जा रही है कि अब विवाह करने से पहले व्यक्ति बहुत बार सोचता है ,कहीं यह जिंदगी भी दूभर न हो जाए | जीवन साथी की तलाश जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए की जाती है अब यदि जिंदगी न रहे ,वह ही किसी के क्रोध और पागलपन की भेंट चढ जाए तो काहे का जीवनसाथी और कैसा जीवन साथी | अब विवाह माता-पिता के लिए केवल अपने दायित्व से मुक्ति ही नहीं है ,केवल हाथ पीले कर देना ही नही है बल्कि अपने बच्चों को ढेर सारी योग्यताओं के साथ जीवन जीने की कला में निपुण कर देना भी है|यदि समय रहते यह चुप्पी नहीं टूटी ,तो परिणाम बहुत ही भयंकर हो सकते हैं| भलाई इसी में है कि हम सभी समय रहते जाग जाएँ |
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पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करने हेतु आगे आएं ब्लोगर

पर्यावरण, ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है जो संपूर्ण मानव समाज का एकमात्र महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्य भौतिक तत्वों - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर पर्यावरण का निर्माण हुआ हैं। इसे सुरक्षित और संरक्षित रखना हमारा परम कर्त्तव्य है ।
हमारे एक सम्मानित ब्लोगर बन्धु शिवम् मिश्रा ने सामूहिक पहल की है इस दिशा में ......तो आईये पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिगत चेतना जागृत करने हेतु चलाये जा रहे इस अभियान में हम सभी शामिल होते हैं ।
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हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मान : प्रकाशित समाचार देख सकते हैं

पढ़ने के लिए समाचार
इमेज पर क्लिक करें
कर लें विचार
ईर्ष्‍या तो नहीं
हो रही है

मुझे तो हो रही है
मैं भी ऐसा ही करूंगा
खूब सक्रिय रहूंगा

सिर्फ बधाई नहीं
सम्‍मानसूचक शाल ओढ़ाते माननीय सचिव श्री रघु मेनन जी
खाऊंगा मिठाई भी।
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हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में टेढ़ापन नहीं है : सीधे सीधे कह रहे हैं पाबला जी : ब्‍लॉगर 36 गढ़ भवन पहुंचे

http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/12/22.html
जो नहीं जानते 
वे जान जायें
पाबला प्‍यारे 
दिल्‍ली में हैं

आज मिल रहे हैं
इसलिए संख्‍या 36 तो होगी ही
पर 36 का आंकड़ा न होगा

एक और एक ग्‍यारह
की ताकत
देखिएगा
कितने जुटेंगे
कितने मिलेंगे
सबको कैद करके ले जायेंगे
पाबला जी

अपने कैमरे में
फिर छोड़ देंगे
इंटरनेट स्‍पेस पर
मंडराने के लिए नहीं
ब्‍लॉगियाने के लिए

बहुत सारे लगायेंगे
खूब सारी पोस्‍टें
जिन पर आयेंगी
धड़ाधड़ टिप्‍पणियां

यहां पर कीजिएगा अवश्‍य
पुष्टि
आप आ रहे हैं 
टिप्‍पणियों की संख्‍या से
लगाया जायेगा अंदाजा

कितना मचेगा शोर
और सार्थक बातें होंगी हर ओर
वैसे कल भी हुई हैं

जब मिले थे
चार हिन्‍दी ब्‍लॉगर
नंबर एक पाबला जी
दो नंबर पर राधारमण जी
तीसरे नीरज बधवार जी
और चौथा कौन ?

मैं तो भूल गया
पर शायद आपको याद हो
मेरी आदत है कि 
अक्‍सर भूल जाता हूं

पर नहीं भूलूंगा
19 दिसम्‍बर 2010 की शाम को
6 बजे 36गढ़ भवन, दिल्‍ली में
पहुंचना
मिलना
जुलना।
हम छिपे हैं यहां, डर कर नहीं मिलने के लिए

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आप ब्लागर हैं ! तो यह जानकारी आपको भी होनी ही चाहिये.


7 इंच स्क्रीन वाला टच पैड जिसे टैबलेट कहा जाता है, भारत आ पहुंचा है. ये हैं सैमसंग का Galaxy Touch Pad व Olive कंपनी का OlivePad. इनके अतिरिक्त बीनाटोन व एक अन्य कंपनी का टेबलेट भी भारत में उपलब्ध होने की ख़बर है पर इनकी वास्तविक जानकारी किसी को नहीं है. 7 इंच वाले टेबलेट अभी नई चीज़ है बाज़ार में.

टैबलेट को बाजार में प्रसिद्ध करने का श्रेय नि:संदेह iPad को जाता है जो 11 इंच स्क्रीन का है लेकिन इसमें कई फ़ीचर नहीं हैं जो 7 इंच के टैबलेट में हैं. iPad की कमियां जग-जाहिर हो चुकी हैं.

सैमसंग व ओलिव पैड के 7 इंची इन टेबलेट की खूबियां ये हैं:-
0- इनमें चार चीज़ें एक साथ समाहित हैं जो हैं - 3MP कैमरा (स्टिल व मूवी दोनों), वाई-फ़ाई इंटरनेट, ई-बुक रीडर, व 3G फ़ोन. अगर आप आमतौर से यात्रा करते हैं तो यह आपके लिए वरदान है क्योंकि आप डायरी के साइज़ वाले इस एक ही गैजेट  में ये चार चीज़ें एकसाथ ले जा सकते हैं.
0- इसके अलावा एक, कम पिक्सेल वाला कैमरा सामने की ओर अलग से है जो इंटरनैट चैटिंग या वीडयो वार्ता के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
0- ये एंड्रोयड के 2.2 संस्करण पर चलते हैं इसलिए आप लीनिक्स की ही तरह हज़ारों साफ़्टवेयर मुफ़्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
0- इनकी इंटरनेट कनेक्टीविटी आम डैस्कटाप या लैपटाप जैसी ही अच्छी है.
0- ये iPad या Kindle की तरह locked device नहीं हैं. इन घोड़ों की लगाम एकदम आपके हाथ रहती है.
0- इनमें दो पिद्दे से स्टीरियो स्पीकर तो हैं ही, आप हैडफ़ोन या ब्लूटूथ से भी आवाज़ सुन सकते हैं/  बात कर सकते हैं.
0- इनमें मोबाइल फ़ोन के बाक़ी सभी फ़ीचर हैं जो आप सोच सकते हैं जैसे रिकार्डर, प्लेयर आदि.
0- 3G कार्ड होने के कारण आप भी इसमें ब्लैकबेरी जैसे नखरे का मज़ा ले सकते हैं (ब्लैकबेरी में आपको तब-तब सूचना मिल जाती है जब-जब आपको इ-मेल आती है. मोबाइल में आप केवल इंटरनेट कनेक्ट करके ही देख सकते है कि मेल आई है लेकिन आप जितनी देर इंटरनेट से कनेक्ट रहते हैं आपका मीटर चलता रहता है. 3G में दो फंडे होते हैं पहला, आम मोबाइल की तरह का रीचार्ज, जो आपके बात करने या इंटरनेट कनेक्ट करने से पैसा घटाता है. जबकि दूसरा रीचार्ज केवल डेटा डाउनलोड के ही समय पैसा घटाता है. इसलिए जैसे ही आपके लिए ई-मेल आती है तो आपका मोबाइल 3G डेटा कनेक्शन उसी समय सूचना देता है. ब्लैकबेरी में भी, बाक़ी फ़ोनों के अलावा, यही एक अलग बात है, बस.) तो भक्तजनो ! 3G में दो तरह के रीचार्ज कूपन डलते हैं. आवाज वाला तो कई साल की वैलेडिटी का होता है पर डेटा वाला 30 दिन के लिए ही है अभी (आगे चलकर ये ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ जाएगा, चिंता न करें). अभी स्कीम 100 रूपये से शुरू होती है.  30 दिन की समाप्ति के बाद भी आप को 3G सुविधा मिलती रहती है पर तब आपका बात करने वाला पैसा घटना शुरू हो जाता है, जिसकी दर कुछ ज़्यादा होती है. अभी भारत में MTNL – BSNL का 3G पर एकाधिकार है पर शायद जल्दी दूसरों की किस्मत खुल जाए, कौन जाने.
0- ये लैपटाप की तरह, बटन दबाते ही, स्लीप मोड में जा सकते हैं इसलिए इन्हें बार-बार आन-आफ़ करने से भी पीछा छूट जाता है.
0- एक बार चार्ज करके आप इन्हें 4-6 घंटे लगातार चला सकते हैं. स्टैंडबाई मोड में तो ये 400 घंटे से ज़्यादा चलने का दावा करते हैं.
0- इनके ई-बुक रीडर बहुत उपयोगी हैं ये पिछला पढ़ा पन्ना याद रखते हैं इसलिए अगली बार ठीक वहीं से खुलते हैं जहां आपने पढ़ना छोड़ा था. आप इसमें फांट, उनका रंग व  साइज तो खुद तय कर ही सकते हैं, बैकग्राउंड रंग भी तय कर सकते हैं.
0- इनमें 32 GB के, मोबाइल में डलने वाले SD कार्ड अलग से डाले जा सकते हैं (मेरे ख़्याल से भले आदमियों के लिए अभी इतनी मेमोरी काफी है, इतनी ही अधिकतम मेमारी iPad में आती है लेकिन उसे आप सेट से बाहर निकाल नहीं सकते)
0- इनमें आप माइक्रोसोफ़्ट व पी डी एफ़ दस्तावेज पढ़ सकते हैं. doc, excel व powerpoint में तो आप इनमें लिख भी सकते हैं.
0- इनके स्क्रीन पर आने वाले की-बोर्ड बहुत सुविधा जनक हैं, आप आराम से टाइप कर सकते हैं.
0- आप इन्हें सीधे ही, आम कंप्यूटर से USB ड्राइव की ही तरह कनेक्ट कर इनके SD कार्ड पर/ से कट-कापी-पेस्ट भी कर सकते हैं.

दूसरे फ़ायदे
0 आप इन्हें किताब ही की तरह कहीं भी किसी भी करवट लेट कर पढ़ सकते हैं (जो लैपटाप व डैस्कटाप में संभव नहीं ).
0 ओलिव पैड तो यह भी बताता है कि आपने फ़लां फ़ोटो कहां व कब खींची थी, बाक़ायदा नक्शे पर. (मैं तो हैरान ही रह गया था).
0 ओलिव पैड में MapMyIndia.com का 2 GB डेटा अलग से दिया है इसलिए आप भारत में कहीं की भी यात्रा इसमें दिए नक़्शों के आधार पर कर सकते हैं. आपको गूगलमैप व इंटरनैट कनेक्टीविटी पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं बची.
0 जहां 3G कनेक्शन नहीं हो तो वहां 2G पर भी काम करते हैं ये पैड. इनका वज़न पौने चार सौ ग्राम है. शीशे की capacitive स्क्रीन हैं जो, सस्ती resistive की तुलना में कहीं अच्छी मानी जाती हैं.
0 ई-बुक पढ़ना कहीं आसान है क्योंकि इनमें फ़ोंट किताबों से भी बड़े दिखाई देते हैं.
0 इनमें पेज अपनी डायरेक्शन, टैबलेट को घुमाने के हिसाब से बदल लेते हैं इसलिए आप इन्हें आड़ा या तिरछा कैसे भी पढ़
 सकते हैं.
0 ओपेरा ब्राउज़र डाउनलोड कर लें तो यह अपनी चौड़ाई के हिसाब से बेबसाइट के शब्दों को फिट कर लेता है इसलिए आपको केवल पेज ऊपर नीचे करना होता है दाएं-बांए नहीं.
0 ये GPS सेवा से भी जोड़े जा सकते हैं.
0 इनमें और भी बहुत कुछ है जिनके बारे में मुझे ख़ुद ही पता नहीं. आए दिन नई नई चीज़ें पता लगती रहती हैं इनके बारे में.

ओलिव पैड व सैमसंग गैलेक्सी टच की तुलना
0 ओलिव पैड में flash 10.1 नहीं चलता है इसलिए इंटरनेट पर वीडियो टीवी नहीं देखा जा सकता लेकिन skyfire ब्राउज़र से यह समस्या दूर हो जाती है, बल्कि स्काइफायर तो फ्रेम भी ड्राप नहीं होने देता. सैमसंग गैलेक्सी टच में फलैश राजीखुशी चलता है.
0 ओलिव पैड made in china है जिसे भारतीय कंपनी, Haier के सहयोग से बना रही है लेकिन डरें नहीं, इसकी क्वालिटी उस तरह की चाइनीज़ नहीं है जैसी कि इसकी मशहूरी है. निश्चिंत रहें, मैं इसे पिछले लगभग दो महीने से प्रयोग कर रहा हूं, यह बल्ले बल्ले प्रोडक्ट है. सैमसंग गैलेक्सी टच का अपना नाम है व विज्ञापन भी खूब आता है पर सैमसंग इसे न तो मोबाइल बताता है न टैबलेट, सैमसंग दोनों श्रेणियों के ग्राहकों को आकर्षित करने की उम्मीद में ऐसा किये बैठा है, जबकि सच यही है कि ये मोबाइल फ़ोन का स्थानापन्न नहीं ही है.
0 ओलिव पैड के प्रोसेसर की गति कम है सैमसंग गैलेक्सी टच की कुछ ज़्यादा पर ये फ़र्क़ उन्हें ही पता लगता है जिनका काम ही ये पता लगाना है. आपको  और मुझे यह फ़र्क़ पता ही नहीं चलता, इसलिए यह बेमानी है.
0 इसी तरह ओलिव पैड की  आन बोर्ड मैमोरी 512 MB है इतनी ही ये एस डी कार्ड से भी ले लेता है.  गैलेक्सी टच की 2GB है पर तब तक कोई खास फ़र्क़ तब तक नहीं पड़ता जब तक कि आप इनपर फूं-फां टाइप गेम खेलने की ज़िद न करें. मेरे ख़्याल से यह गैजैट इस तरह के खिलाड़ियों के लिए बनाया भी नहीं गया है.

सबसे बड़ी कमजोरी
0 एंड्रोयड के कारण अभी भारतीय भाषाएं, हिन्दी सहित, अभी इस पर नहीं चलती हैं. इसलिए आप हिन्दी वेबपेज नहीं पढ़ सकते.
0 इन पर किताबें पढ़ने से आंखें जल्दी थकती हैं पर हां, रोशनी पर्याप्त होने पर यह समस्या इतनी भी बड़ी नहीं लगती. यही समस्या लैपटाप पर भी यूं तो है ही.

दोनों में सबसे बड़ा अंतर
ओलिव पैड 23 हज़ार का है तो सैमसंग गैलेक्सी टच 37-38 हज़ार का. ओलिव पैड ने मुझे 16 GB का एस डी कार्ड मुफ़्त दिया तो कीमत रह गई 21.5 हज़ार. अब आप करीब 15 हज़ार रूपये यूं ही ज़्यादा ख़र्च करने के मूड में हो तो आपको सैमसंग ही लेना चाहिये वरना ओलिव पैड दा जवाब नईं. मेरे हिसाब से सैमसंग कहीं अधिक महंगा टेबलेट है जिसे ख़रीदना सझदारी के अलावा ही कुछ और कहा जाएगा. ओलिव पैड वालों की साइट ये है http://www.olivetelecom.in/ सैमसंग के बारे में कहने की ज़रूरत नहीं है.
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सर्जना जी की रचना गुलाबो मासी...खुशदीप

सर्जना शर्मा जी नई ब्लॉगर है...उन्होंने अपने रसबतिया ब्लॉग पर एक बेहतरीन संस्मरण लिखा है...ये संस्मरण ऐसी शख्सीयत के बारे में जिसे हमारे में समाज में न तो पुरुष और न ही महिलाओं में स्थान दिया जाता है...लेकिन आप खुद पढ़ कर देखिए ये शख्सीयत हम इनसानों से भी कितनी आगे है...

टीवी पर एक खबर चल रही थी मुंबई में राष्ट्रीय किन्नर संघ के अध्यक्ष गोपी अम्मा की हत्या के आरोप में उन्ही की शिष्या आशा अम्मा पकड़ी गयी । मामला प्रोपर्टी का था । किन्नर जो कि खुशी के मौके पर हर घर में आकर नाचते गाते हैं अब बहुत से अपराधों में पकड़े जाने लगे हैं । कभी किसी को जबरन पकड़ कर हिजड़ा बनाने के आरोप में तो कभी आपसी लड़ाई झगड़े औऱ लूटपाट के आरोप में पकड़े गए । सड़क पर चौराहों पर जब लाल बत्ती होने पर गाड़ी रूकी रहती है तो सजे धजे किन्नर मांगने आ जाते हैं । मंदिरों के बाहर भी किन्नर मांगते रहते हैं । मैं कभी भी किसी किन्नर को खाली हाथ नहीं जाने देती । कुछ रूपए उनकी हथेली पर ज़रूर रखती हूं । कई बार राह में यूंही चलते फिरते मिल जाते हैं तो भी उन्हें पैसे ज़रूर देती हूं।




मैं जब भी किन्नरों को देखती हूं मुझे गुलाबो मास्सी याद आ जाती है । गुलाबो मास्सी की बहुत मीठी यादें मेरे साथ जुड़ी हैं । मुझ से ही क्यूं हमारे मौहल्ले के हर बच्चे को आज भी गुलाबो मास्सी की याद है । गुलाबो मास्सी का सूचना केंद्र तो हम सब बच्चे ही होते थे । हमारे मौहल्ले में 16 घर थे सबके 6 या सात बच्चे थे बस मैं और मेरी बहन ही दो थे । हमारा मौहल्ला एक बड़े परिवार की तरह था । सब बच्चे मिल कर बहुत उधम काटते थे ।

गुलाबो मास्सी जब अपनी टोली के साथ आती तो उनका ढोलक वाला ज़ोर से अपनी ढ़ोलक पर थाप देता और वो ताली बजातीं । हम सब बच्चे भाग कर गुलाबो मास्सी के पास पंहुच जाते । हमारे मौहल्ले में घुसते ही पीपल का पेड़ था और वहां बैठने की जगह भी बनी हुई थी गुलाबो मास्सी अपनी टोली के साथ वहां बैठ जाती हम सब को लाड़ दुलार करती । फिर वो पूरी सूचनाएं लेती किस के घर बेटा हुआ , किसके बेटे की शादी हुई , या किसकी बेटी अपने मायके डिलीवरी कराने आई हुई है । अपने मौहल्ले तो क्या पूरे शहर की खबर हम मास्सी को बता देते।

फिर वो पूछतीं, 'कुड़े तेरी मां ने की चाढ़या ' ए लड़की तेरी मां ने आज क्या खाना बनाया है । हम बता देते फिर वो कह जाती कि आज मैं तुम्हारे घऱ खाना खांऊगी । उनका सबके साथ अपनेपन का नाता था मास्सी यानि मौसी हमारी मां की बहन यही संबोधन उन्हें सब देते थे । कभी किसी से लडती नहीं थीं , ना ही किन्नरों जैसी अश्लील हरकतें करतीं थीं । अगर किसी ने कहा कि आज नहीं अगले हफ्ते नाचने आ जाना तो वो मान जातीं । कभी नेग को लेकर उन्होने विवाद नहीं किया हां सूट ज़रूर मांगती थी. उनके ढ़ोलक वाले के कपड़े भी कभी कभी मांग लेतीं । वो सबकी माली हालात के बारे में जानती थीं, इसलिए हैसियत देख कर नेग लेतीं कभी ज्यादा की जिद नहीं करती।

अगर मैं कहूं कि गुलाबो मास्सी किसी सदगृहस्थ महिला जैसी थीं तो इसमें कोई अति श्योक्ति नहीं होगी । सब महिलाओं के साथ बहुत अच्छा संबंध रखती दुख सुख में आती जाती । हम बच्चों से तो एक विशेष रिश्ता था सूचनाएं तो सभी हम से ही मिलती थीं । गुलाबो मास्सी पिंजौर से आया करती थीं उनका बड़ा सारा इलाका था । हम पंचकूला में रहते थे. उन्होनें जिन बच्चों के पैदा होने में नाचा उनके बच्चों के पैदा होने पर भी वही आती थीं । जो अपने घर में नचवाता था वो हम बच्चों से ही कह देता-जाओ सबके घर सददा यानि बुलावा दे आओ .

हम आनन फानन में सबको बुला लाते . तब तक उनकी टोली चाय पानी पीती । 10 -15 निनट में सब महिलाएं उनके लिए आटा , चावल चीनी और नेग लेकर पहुंच जातीं । और वो मन लगा कर नाचती उनकी टोली के अन्य किन्नर भी नाचते पंजाबी गाने , फिल्मी गाने . और उनका ढ़ोलक बजाने वाला तो लाजवाब था । बहुत अच्छी ढ़ोलक बजाता । जब तक वो जीयीं उनके साथ वही रहा।
मेरी बुआ की बेटी अरूणा भी बहुत अच्छी ढ़ोलक बजाती है . गर्मियों की छुट्टियों में वो आयी होती तो ढ़ोलक वाले के पास बैठ कर और अच्छा बजाना सीखती और हंसी में कहती थी अगर मुझे बड़े होकर नौकरी ना मिली तो मैं भी आप लोगों की टोली में ढ़ोलक बजाऊंगी । गुलाबो मास्सी मुझे रख लोगी ना ? और सब हंस देते। और फिर बारी आती बच्चे को लोरी सुनाने की .

किन्नर नवजात शिशु को अपनी गोद में लेकर दूध पिलाने का अभिनय करते और साथ ही गाते ---' घर जाण दे री लाला रोवे मेरा' यानि अब मुझे घर जाने दो मेरा बच्चा रो रहा है । गुलाबो मास्सी नवजात शिशु को अपनी गोद में लेकर एक पीढ़े पर बैठ जाती और अपने आंचल से बच्चे को ढ़क दूध पिलाने का अभिनय करती । उस समय उनके चेहरे पर किसी ममतामयी मां जैसे भाव होते। आंखे थोड़ी नम हो जातीं । हम छोटे थे लेकिन जैसे अपनी मां की आंखों की भाषा समझ सकते थे वैसे ही गुलाबो मास्सी की आंखो और चेहरे के भाव भी पढ़ लेते थे।

अब जब उनका वो चेहरा आंखों के सामने आता है तो महसूस होता है कि उस समय उन्के दिल को अपने किन्नर होने का कितना दुख होता होगा । शायद मातृत्व का कुछ पल का वो सुख वो सुखद अहसास उन्हें भावुक बना देता था । दुलाबो मास्सी की गोद में अपना बच्चा सौंपने में किसी को ज़रा भी संकोच नहीं होता था । और फिर बच्चे को गोद में लिए लिए ही वो सबसे नेग लेती । और फिर बच्चा अपने ढ़ेरों आशीर्वादों के साथ मां , दादी या नानी की झोली में डाल देतीं अगर उनसे कोभ कहता गुलाबो आज तो तू थोड़ा ही नाची तो वो कहती लो और नाच देती हूं।

वो सबको खुश करके जातीं औऱ जाते जाते वो नेग में मिले चावलों के दानों से अपनी मुठ्टी भर लेतीं औऱ गातीं --- तेरे कोठे उत्ते मोर तेरे मुंडा जम्मे होर साल नूं फेर आंवां ( तेरी छत पर मोर है , तेरे एक बेटा और हो और अगले साल मैं फिर बधाई गाने आऊं ) वो कईं बार पूरे सुर ताल में अपनी मंडली के साथ यही लाईन गातीं जातीं और चावल के दाने घर की तरफ डालती जातीं । तब तक फैमिली प्लानिंग का रिवाज़ नहीं था । औऱ हंसते मुस्कुराते वो लौट जातीं।

पहले वो बस में आया करती थीं फिर उन्होने एक मारति कार खरीद ली और उसी में आया करतीं । गुलाबो मास्सी ने हम सब को बड़े होते देखा , सबकी शादी होते और फिर बच्चे होते देखे । पढ लिख कर मैं नौकरी करने दिल्ली आ गयी मेरी बहन के बेटा हुआ तो वो खुशी के मारे पागल हो गयी । क्योंकि हमारा कोई भाई नहीं था खूभ नाच कर गयीं नेग लेकर गयीं । जब कभी मैं दिल्ली से घर जाती और वो किसी के यहां बधाई गाने आतीं तोमैं उनसे जाकर ज़रूर मिलती और वो खूब प्यार दुलार करतीं । आजकल जब किन्नरों की हरकतों के बारे में पढ़ती हूं तो मन दुखी हो जाता है।

किन्नरों की कमाई भी अब कहां रही . हम दो हमारे दो और बच्चा एक ही अच्छा के नारे ने उनकी आमदन तो खत्म कर ही दी है बढ़ते शहरी करण में उनके इलाके भी शायद वैसे सुरक्षित नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे । वसंत विहार में रहने वाले हमारे एक मित्र ने बताया कि उनकी विशाल कोठी में जब व्हाईट वाश हुआ तो इलाके के किन्नर नेग मांगने आगए कहने लगे आपका बेटा तो शादी करता नहीं फिर कोठी की पुताई का ही नेग दे दो।

अब कुछ किन्नर अपने काम धंधे में भी लगने लगे हैं । और कुछ अपराध की दुनिया में चले गए हैं । लेकिन मेरे मन में तो बचपन से ही एक छवि है ममता मयी गुलाबो मास्सी की वो अब इस दुनिया में नहीं रहीं लेकिन उनकी याद मैं कभी भुला नहीं पाऊंगी । महानगरीय जीवन में किन्नर तो क्या अपने पड़ोसी से भी हम ऐसा नाता नही जोड़ पाते हैं जो हमारे पूरे मौहल्ले के छोटे से कस्बे का गुलाबो मास्सी के साथ था।
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आओ गाठी पाईये

आज के समय में ये गाठी पाने वाला खेल यदा कदा ही दिखता है। कुछ वर्षों पहले तक बच्‍चे गाठी, गुल्‍ली-डंडा, पतंगबाजी, पकड़मकपड़ाई, लोहा-लक्‍कड़, छुपन-छुपाई, भागमभाग मतलब चैन बनाकर पकड़ना आदि खेल खेला करते थे। पर इन सभी खेलों पर टीवी के कार्टून्‍स ज्‍यादा हावी  हो गये हैं और बच्‍चे क्रिकेट के दीवाने ज्‍यादा होते जा रहे हैं।

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आलेख प्रतियोगिता और आप

प्रिय मित्रो ,

ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है । हमारा उद्देश्य पर्यावरण के प्रति चेतना जागृति करना है। आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पी्ढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें। प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए सूचना एवं नियम इस प्रकार है।



विषय -- "बचपन और हमारा पर्यावरण"

प्रथम पुरस्कार
11000/= (ग्यारह हजार रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

द्वितीय पुरस्कार
5100/= (इक्यावन सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

तृती्य पुरस्कार
2100/= (इक्की्स सौ रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र

सांत्वना पुरस्कार (10)
501/=(पाँच सौ एक रुपए नगद)
एवं प्रमाण-पत्र


1. इस प्रतियोगिता में 1 नवम्बर 2010 से 14 जनवरी 2011 तक आलेख भेजे जा सकते है.

2. प्रतियोगिता में सिर्फ़ दिए गए विषय पर ही आलेख सम्मिलित किए जाएंगे।

3. एक रचनाकार अपने अधिकतम 3 अप्रकाशित मौलिक आलेख भेज सकता है पुरस्कृत होने की स्थिति में  वह केवल एक ही पुरस्कार का हकदार होगा.

4. स्व रचित आलेख  1 नवम्बर 2010 से 14 जनवरी 2011 तक lekhcontest@gmail.com  पर भेज सकते हैं. कृपया साथ में मौलिकता का प्रमाण-पत्र एवं अपना एक अधिकतम १०० शब्दों में परिचय तथा तस्वीर भी संलग्न करें। नियमावली की कंडिका 7 से संबंध नहीं होने का का भी उल्लेख प्रमाण-पत्र में करें। आलेख कम से कम 500 एवं अधिकतम 1000 शब्दों में होने चाहिए।

आपसे निवेदन है कि प्रत्येक रचना को अलग अलग इमेल से भेजने की कृपा करें. यानि एक इमेल से एक बार मे एक ही रचना भेजे.

5. हमें प्राप्त रचनाओं मे से जो भी रचना प्रतियोगिता में शामिल होने लायक पायी जायेगी उसे हमारे सहयोगी ब्लाग "हमारा पर्यावरण"
 
पर प्रकाशित कर दिया जायेगा, जो इस बात की सूचना होगी कि प्रकाशित रचना प्रतियोगिता में शामिल कर ली गई है।

6. 15 जनवरी 2011 से प्रतियोगिता में सम्मिलित आलेखों का प्रकाशन  "हमारा पर्यावरण"
 
पर प्रारंभ कर दिया जायेगा.

7. इस प्रतियोगिता में हमारा पर्यावरण, एसार्ड, एवं पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित कोई भी व्यक्ति या उसका करीबी रिश्तेदार भाग लेने की पात्रता नहीं रखता।

8. इन रचनाओं पर  "हमारा पर्यावरण"
 
का कापीराईट रहेगा. और कहीं भी उपयोग और प्रकाशन का अधिकार हमें होगा.

9. रचनाओं को पुरस्कृत करने का अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ "हमारा पर्यावरण"
 
के संचालकों के पास सुरक्षित रहेगा. इस विषय मे किसी प्रकार का कोई पत्र व्यवहार नही किया जायेगा और ना ही किसी को कोई जवाब दिया जायेगा.

10. इस प्रतियोगिता के समस्त अधिकार और निर्णय के अधिकार सिर्फ़  "हमारा पर्यावरण"
 
के पास सुरक्षित हैं. प्रतियोगिता के नियम किसी भी स्तर पर परिवर्तनीय है.

11.पुरस्कार  IASRD
 
द्वारा प्रायोजित हैं.

12. यह प्रतियोगिता पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए एवं हिंदी मे स्वस्थ लेखन को बढावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई है.
(नोट:-प्रतियोगिता में ब्लॉग जगत के अलावा अन्य भी भाग ले सकते हैं प्रतियोगी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए)


आपको सूचित इस लिए कर रहा हूँ क्यों कि मैं चाहता हूँ आप इस प्रतियोगिता में भाग लें और अपने आलेख जरूर भेजें !  आशा है आप मेरी विनती पर जरूर गौर करेंगे !

सादर आपका


शिवम् मिश्रा
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लंबे अंतराल के बाद एक आलसी फिर से ब्लॉगर परिवार में


कहते हैं "आप राजनीति को छोड़ दें, राजनीति आपको नहीं छोडती". मेरे हिसाब से यह बात ब्लोगिंग पर भी शत-प्रतिशत सही बैठती है. मैंने आलस की वजह से अपने ब्लॉग जेएनयू पर काफी समय से लिखना छोड़ रखा था. ब्लॉग पढता भी नहीं के बराबर था इधर. लगभग नाता टूट ही चला था ब्लोगिंग से. 
पर एक बार आप ब्लोगर बन जाएँ, ब्लोगिंग आपके रगों में बैठ जाती है. इस आभासी दुनिया में अपनी बात को रखने का एक अलग ही मोह होता है जो कि आपको बार बार अपनी और खींचता है. बीच-बीच में जब भी इधर आता था. जोश-खरोश से लोगों को ब्लोगिंग करते देखता. एक दूसरे से बहस करते, लड़ते, एक-दूसरे का उत्साह बढाते... कहीं न कहीं एक टीस सी उठती था.. लगता था कुछ छूट रहा है.. 
पिछले कुछ समय से यह नोस्टाल्जिया कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. सो फिर से ब्लोगिंग शुरू करने की ठानी. जेएनयू में अब हूँ नहीं. दक्षिण कोरिया की सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी में अध्ययन कर रहा हूँ. सो पुराने ब्लॉग से हटकर एक नया ब्लॉग बनाने की सोची और एक नया डोमेन खरीदा और नया ब्लॉग बनाया: सुबह की शान्ति के देश में- द कोरियन एक्सपीरिएंस . पहली पोस्ट आज ही लिखी है: ब्लॉगिंग: ये रोग बड़ा है जालिम   आपसे स्नेह और उत्साहवर्द्धन की अपेक्षा है..
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हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के हथियार : पहचानें इन फौजियों को

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अभी पूरे 15 दिन शेष है, जो कि विशेष हैं - फिर भी जानिए इस वर्ष हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग ने क्‍या - क्‍या पाया

जब हम कुछ खो रहे होते हैं
तो दूसरे सिरे पर बैठा वो
जरूर कुछ पा रहा होता है

वो कौन है
क्‍यों मौन है
समय आने पर
करेगा सब उजागर

समय का शिलालेख
रीता नहीं रहेगा
बीता हुआ सब
आस जगाएगा
विश्‍वास बढ़ाएगा

बढ़ चलेंगे
सब शिखर की ओर
अभी तो हुई है
सिर्फ भोर

सुबह ही कैसे
आप सब कुछ
पा सकते हैं
यह बचपन है
बचपन में
किशोरावस्‍था, यौवन
का लुत्‍फ कैसे उठा सकते हैं

आप अपनी जिम्‍मेदारी से
परे मत हटिए
हमारे साथ डटिए
और आप आंखें मूंद रहे हैं
सतर्क हो जाइये
वरना दोबारा से सो जायेंगे
मीठी नींद में

नींद से जरूरी सक्रियता है
जब हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग रोम रोम में
इटली इटली में
अमेरिका, फ्रांस, रूस में
नजर आएगी
बहुत कुछ सुनहरा लाएगी

टिप्‍पणी यहां नहीं चाहिए
यहां क्लिक कीजिए
और जिस किनारे पहुंचे
उसी तट पर दीजिएगा
अपनी बेबाक राय।
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सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा आयोजित राजभाषा पुरस्‍कार वितरण समारोह की सूची

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मानव अंगों के टुकड़ों का प्रदर्शन मत करो..

(उपदेश सक्सेना)
देहरादून की अनुपमा को उसके साफ्टवेयर इंजीनीयर पति ने नृशंस तरीके से ७२ टुकड़े कर मौत के घाट उतार दिया. इस लोमहर्षक घटना के वक्त क़ातिल पति की मनःस्थिति जो भी रही हो, जब उसने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया है, तो उसे सज़ा देने में देरी किस बात की?. दरअसल यह हमारे क़ानून की खामी है कि वह सारे सबूत होने के बाद भी न्याय में इंतज़ार करवाता है. अब बात मीडिया की. इस बेहद दर्दनाक हादसे पर भी मीडिया अपनी टीआरपी बढाने का लोभसंवरण नहीं कर पाया. किसी चैनल पर बाक़ायदा एक डमी पर ह्त्या का प्रयोग दिखाया जा रहा था तो दूसरा सब कुछ जान कर भी अनुपमा के बच्चों से पूछ रहा पोस्टमार्टम लेकर तक के समाचार नमक-मिर्च लगा कर दिखाए जा रहे हैं. मृतका के अंगों की खोज कर रही पुलिस के साथ कुछ चैनलों के पत्रकार भी चल रहे हैं, जो मिलने वाले अंगों के बारे में सचित्र विवरण दर्शकों को परोस रहे हैं जिसके कारण टीआरपी की अंधी दौड में मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ती नज़र आ रही हैं. बस करो, छोटे परदे को और लाल मत करो.
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विजय जाधव का यूं चले जाना दुखद है - नूतन ठाकुर

हरियाणा अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह यमुनानगर में  विजय जाधव पत्रकारों को संबोधित करते हुए

आज अचानक एक खबर देखी. नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया के निदेशक विजय जाधव की ह्रदय गति रुकने से मृत्यु. 43 वर्षीय जाधव भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी थे और नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया के साथ-साथ प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो, पुणे के भी प्रभारी थे. मूल रूप से इंजिनीयरिंग स्नातक जाधव 1994 बैच के भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी थे. दूरदर्शन, आकाशवाणी तथा प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो में अपने काम की बदौलत अपने लिए एक अच्छा स्थान बना चुके थे.
जिस स्थान पर जाधव का वास्तव में मन लगा और जहां उन्होंने अभूतपूर्व कार्य करे शुरू किये थे वह फिल्म आर्काइव था जहां वे सबसे कम उम्र के निदेशक बने थे. यहां आते ही उन्होंने पुराने फिल्मों को डीजीटाईज करने और उन्हें डिजिटल रूप में संचयित करने का कार्य शुरू कर दिया था. साथ ही उन्होंने जनता तो फिल्मों के बारे में जागरुक करने के लिए शॉर्ट-टर्म फिल्म अप्रेशिएशन कोर्स तथा क्षेत्रीय भाषाओं में छोटे शहरों में फिल्म समारोह शुरू कराये थे.
संगीत के बेहद शौकीन जाधव खुद भी एक अछे तबला वादक थे और उस्ताद अल्लाह रक्खा की शागिर्दगी में पन्द्रह साल तबला वादन सिखा था. इतने काबिल और बहु-आयामी व्यक्तित्व के अचानक से अस्त हो जाने से स्वाभाविक रूप से गहरा आघात सा लगता है और यह मृत्यु भी एक अपूरणीय क्षति है. उनके पीछे उनके शोक-संतप्त परिवार में उनकी माँ, पत्नी साधना और दो बच्चियां हैं जिनको अचानक से यह भयानक हादसा झेलना पड़ा है. कुछ पीछे चलते हैं और जाधव द्वारा दिए कुछ बयान और उनसे जुड़ी कुछ खबरें पढ़ते हैं-
8 जून 2009-  एनएफएआई के निदेशक विजय जाधव ने कहा, 'हमारे पास 1930 से फिल्में हैं और उनकी लाइफ सीमित होती है। हमें इन्हें कम से कम अगले 200 साल तक संरक्षित रखना है। स्क्रीनिंग के लिए ये फिल्में देश के कई फिल्म क्लबों तक जाती हैं। हम इस पर रोक लगाना चाहते है जिससे लंबी अवधि में इन्हें बचाया जा सके।'
फेसबुक से साभार
नवंबर 23, 2009-  गोवा में सोमवार से शुरू हो रहे 40वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में वर्ष 1913 से लेकर अब तक के 350 फिल्मों के दुर्लभ चित्र लगाए जाऐंगे। भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफएआई) के विजय जाधव ने आईएएनएस को बताया," जिन फिल्मों के चित्र प्रदर्शित किए जाएंगे उनमें प्रमुख रूप से 'राजा हरिश्चंद्र' (1913) 'कल्यानचा खजिना' (1924) और 'सती सवित्री' (1927) शामिल हैं।"
सितम्बर 26, 2010- “भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता दिनों दिन बढती जा रही है और ऐसे में यह बात महसूस की जाने लगी है कि फिल्मों की लोकप्रियता के साथ-साथ उसकी समीक्षा के स्तर को भी उसी अनुपात में बढ़ाए जाने की जरूरत है। इसके अंतर्गत फिल्म समीक्षा से जुड़े पाठ्यक्रम को जल्द ही शुरू किया जाना है। पुणे स्थित नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (एनएफएआई) और फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एएफटीआईआई) ने इस काम के लिए कदम बढ़ाया है।“ एनएफएआई के निदेशक विजय जाधव ने बताया, इस दिशा में काम करने के लिए, जिसमें फिल्म समीक्षा के काम से जुड़े लोग शामिल होंगे, एनएफएआई और एएफटीआईआई ने अखिल भारतीय स्तर पर सिनेमा की रिपोर्टिग से जुडे़ पाठ्यक्रम को अक्टूबर से शुरू करने का फैसला किया है।
दिसम्बर 06, 2010- “भारत में पैसों के लिए फिल्में बनाई जा रही है, अवार्ड के लिए नहीं। निर्माता एक फिल्म बनाने के बाद दूसरी का निर्माण शुरू कर देता है। जिस कारण फिल्मों का सही प्रकार से रख-रखाव नहीं हो पा रहा है। इस वजह से अधिकांश फिल्मों की सीडी व डीवीडी खराब हो जाती है। ये कहना है नेशनल फिल्म आर्काइव्स ऑफ इंडिया के निदेशक विजय जाधव का। श्री जाधव तीसरे हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दौरान पत्रकारों स बात कर रहे थे।“
ऊपर लिखे गए इन सब ख़बरों से एकदम अलग आज अखबारों में पढ़ी गयी यह सूचना मुझे स्तब्ध करने वाली थी. दो कारणों से- पहला तो यह कि कई परस्पर मित्रों के जरिये मैं विजय जाधव जी के बारे में जानती थी और उनके एक अत्यंत उद्यमी और तेज अधिकारी होने की बात से भली भांति परिचित थी. दूसरा यह कि वे अभी कुछ दिन पहले ही चर्चा में थे जब उन्होंने फिल्म आर्काइव की दशा को सुधारने के सम्बन्ध में कई सारी बातें और अपनी कार्य योजना प्रकट की थी. फिर यह भी कि मौत के समय उनकी उम्र ही कितनी थी- मात्र तैतालीस साल. इतनी कम उम्र में ही विजय जाधव जी ने काफी कुछ ऐसे कार्य कर दिए थे जिन्हें सराहनीय और कुछ मायने में ऐतिहासिक माना जा सकता है.
लेखिका डॉ नूतन ठाकुर, पीपल’स फोरम, लखनऊ की संपादक हैं
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